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मुंबई : बॉम्बे हाई कोर्ट ने सोमवार को एक अमेरिकी नागरिक के खिलाफ चल रहे केस में उसे दोषी माना। कोर्ट ने उससे पूछा कि क्या वह सोचता है कि भारत एक ऐसा देश है, जहां कानून आसानी से तोड़ा जा सकता है? जस्टिस सत्यरंजन धर्माधिकारी और गौतम पटेल की पीठ ने फटकार लगाते हुए कहा, 'क्योंकि आप अमेरिका से हैं, आपको लगता है कि आपके पास अधिकार है कि इस देश में आप कुछ भी कर सकते हैं...आप जुगाड़ लगा सकते हैं?' 

मैसचुसिट्स निवासी जोशुआ सदागुर्स्की (29) ने हाई कोर्ट में एक याचिका दायर की थी। इस याचिका में उन्होंने कहा कि 21 मई, 2018 को उसे मुंबई हवाई अड्डे पर आने के नौ घंटे के अंदर ही वापस भेज दिया गया था। अधिकारियों को पता लगा था कि उसने इससे पहले अपनी वीजा शर्तों का ज्यादा रुक कर और देश में रोजगार कर उल्लंघन किया था जबकि उसे इसकी इजाजत नहीं दी गई थी। भारत में 2017 से 2018 के बीच अपने पिछले दौरे के दौरान वह तय समय से ज्यादा रुका और संबंधित विदेशी क्षेत्रीय पंजीकरण कार्यालय में अपने वीजा के समाप्त होने के बाद देर से पहुंचा। 

जोशुआ ने कोर्ट में कहा कि उसने भारत में पांच साल तक उल्लेखनीय योगदान किया है। कोर्ट ने सुनवाई के दौरान पाया कि जोशुआ एनजीओ टीच फॉर इंडिया के फेलोशिप कार्यक्रम में आया था और उसने अपनी वीजा शर्तों का उल्लंघन किया। वह 180 दिनों का वीजा खत्म होने के बाद भी भारत में रुका और उसने इसे एक मामूली वीजा उल्लंघन करार देते हुए कहा कि उसने इसके लिए पहले ही जुर्माना अदा कर दिया था। कोर्ट ने पूछा, 'क्या आप 180 दिनों से ज्यादा यहां नहीं रुके? आपने एफआरआरओ (विदेशियों के क्षेत्रीय पंजीकरण कार्यालय) को सूचना नहीं दी। क्या यह पर्याप्त कारण नहीं है कि आपको यहां से वापस भेजा गया।' 

आरोपी के वकीलों ने कहा, मौका दिया जाना चाहिए था 

जोशुआ के अधिवक्ताओं बीरेंद्र सराफ और जमान अली ने तर्क दिया कि उन्हें वापस भेजना निर्वासित कानून के खिलाफ है। जिसमें राइट टू लाइफ और अंतर्राष्ट्रीय वाचाएं शामिल हैं। सराफ ने कहा, 'कम से कम मुझे समझाने का मौका दिया जाना चाहिए था।' एफएफआरओ के अधिवक्ता अतुल सिंह ने कहा कि वीजा में स्पष्ट था कि वह 180 दिन से ज्यादा यहां नहीं रुकेंगे और वह भारत में रोजगार के लिए पात्र नहीं हैं। 

जोशुआ अधिवक्ताओं ने कहा कि वह रोजगार नहीं कर रहे थे। उन्होंने कहा कि शिक्षण को रोजगार के समान नहीं माना जा सकता है। लेकिन न्यायाधीशों ने कहा कि जोशुआ भारत की कोई सेवा नहीं कर रहे थे। न्यायमूर्ति धर्माधिकारी ने कहा, 'एनजीओ हो या कंपनी वहां काम करना रोजगार ही है, चाहे वह गैर-लाभकारी ही क्यों न हो।' पीठ ने माना की अमेरिकी नागरिक 2017-18 तक 450 दिनों तक देश में ज्यादा रहा। 

जस्टिस गौतम पटेल ने कहा, 'लगता है कि आपने सबक नहीं सीखा।' उनके वकील ने कहा कि वह छह बार भारत की यात्रा कर चुके हैं। जस्टिस ने कहा, 'एक अमेरिकी भारत आता है तो इसमें खास क्या है? एक छात्र के रूप में आप किसी दूसरे देश में जाइए और देखिए क्या होता है। जेएफके के तहत वे आपको अगले विमान से वापस घर भेज देंगे। जस्टिस पटेल ने कहा, 'माफ करने के लिए भारत एक महान देश है। यहां हर किसी का अधिकार है लेकिन किसी की कोई जिम्मेदारी नहीं है।


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