कर्ज में डूबा भारत 220% की बढ़ोतरी
- सरकार की आमदनी कम और खर्च ज्यादा है। ऐसे में वह कर्ज लेती है। मनमोहन सरकार और मोदी सरकार के 10 सालों की तुलना में किसकी सरकार में कितना कर्ज था? आइये आज हम आपको इसकी जानकारी देंगे।आपको जानकारी के लिए बता दें कि, सरकार कई स्रोतों से कर्ज लेती है। इसमें घरेलू और विदेशी कर्ज शामिल हैं। देश में वह किसी बीमा कंपनी, आरबीआई, कॉरपोरेट कंपनी या किसी अन्य बैंक से कर्ज लेती है। विदेश में वह आईएमएफ, विश्व बैंक या अन्य अंतरराष्ट्रीय बैंकों से कर्ज लेती है। भारत पर अभी कुल विदेशी कर्ज 712 अरब डॉलर है। यहां की आबादी 1.40 अरब है, तो इस हिसाब से हर भारतीय पर 5 डॉलर यानी 430 रुपये का विदेशी कर्ज है।गर्लफ्रेंड संग सनातनी रंग में रंगे क्रिस मार्टिन, हाथों में हाथ डाले संगम में लगाई डुबकी, वीडियो वायरल
बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक, वित्त वर्ष 2022-23 के अंत तक कर्ज की राशि 152.61 लाख करोड़ रुपये रहने का अनुमान लगाया गया था। इसमें आंतरिक कर्ज करीब 148 लाख करोड़ रुपये और विदेशी कर्ज करीब पांच लाख करोड़ रुपये है। इसमें अगर अतिरिक्त बजटीय संसाधन (ईबीआर) और नकद शेष को शामिल कर लिया जाए तो कुल अनुमानित कर्ज 155.77 लाख करोड़ रुपये होगा। सरकार ईबीआर को बजट में लिखे कार्यों के अलावा अन्य जरूरतों को पूरा करने के लिए रखती है और नकद शेष अतिरिक्त धन होता है, जिसका इस्तेमाल आपात स्थिति में किया जा सकता है।वर्ष 2014 तक 'भारत सरकार की ऋण स्थिति' पर बजट दस्तावेज आधिकारिक वेबसाइट पर उपलब्ध हैं। दस्तावेज के अनुसार, 31 मार्च 2014 तक भारत सरकार पर 55.87 लाख करोड़ रुपये की देनदारियां थीं। इसमें से 54.04 लाख करोड़ रुपये आंतरिक ऋण और 1.82 लाख करोड़ रुपये विदेशी (बाह्य) ऋण था। 2005 से 2013 तक मनमोहन सिंह सरकार के कार्यकाल में भारत का कुल कर्ज 17 लाख करोड़ रुपये से बढ़कर 50 लाख करोड़ रुपये हो गया। इस तरह कुल कर्ज में 190% की बढ़ोतरी हुई। 2014 से सितंबर 2023 तक भाजपा की मोदी सरकार के 9 साल में भारत का कर्ज 55 लाख करोड़ रुपये से बढ़कर 161 लाख करोड़ रुपये हो गया। इस तरह मोदी सरकार के कार्यकाल में कर्ज में 220% की बढ़ोतरी हुई