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बीजिंग। चीन के विभिन्न मार्गों से विश्व को जोड़ने वाले महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट "बेल्ट एंड रोड फोरम" की दूसरी बैठक में भी भारत शामिल नहीं होगा। इस बार अमेरिका ने भी इसका हिस्सा बनने से इनकार कर दिया है। हालांकि, इन दोनों देशों के अलावा, खरबों डॉलर के चीनी प्रोजेक्ट से संबंधित गुरुवार से शनिवार तक चलने वाले तीन दिवसीय सम्मेलन में करीब 37 देश शिरकत करेंगे।

चीन में स्थित अमेरिकी दूतावास ने भी एलान किया है कि वह इस सम्मेलन में अपने अधिकारियों को नहीं भेजेगा। चूंकि इस मुद्दे पर दोनों देशों के बीच विवाद हैं। अमेरिकी दूतावास के प्रवक्ता ने बताया कि अमेरिका का वॉशिंगटन से अपने अफसरों को इस सम्मेलन में भेजने का कोई इरादा नहीं है। हालांकि, वर्ष 2017 में हुए पहले सम्मेलन में अमेरिका का प्रतिनिधित्व व्हाइट हाउस के सलाहकार मैट पोटिंगर ने किया था। उसके बाद से इटली समेत कई देशों ने बेल्ट एंड रोड फोरम पर दस्तखत किए हैं। 

2013 में शुरू हुआ था प्रोजेक्ट

चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने बेल्ट एंड रोड प्रोजेक्ट को वर्ष 2013 में शुरू किया था। इसका मकसद राजमार्गों, रेलवे लाइनों, बंदरगाहों और समुद्री रास्तों के जरिए एशिया, अफ्रीका और यूरोप को जोड़ना है। इस परियोजना के लिए चीन ने अरबों डॉलर अपने 60 साझीदार देशों पर खर्च किए हैं। श्रीलंका, मालदीव और पाकिस्तान जैसे उसके साझीदार देश उसकी परियोजना के तहत उसके कर्ज में डूब चुके हैं। इससे भारत सहित कई देशों की चिंता बढ़ी है कि यह चीन का कर्ज में फंसाने वाला कोई जाल हो सकता है। इस सम्मेलन में रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान भी शामिल होंगे। साल 2017 में हुए सम्मेलन की ही तरह इस बार सौ से अधिक अंतरराष्ट्रीय संगठनों के प्रतिनिधि भी इसमें शामिल होंगे। हालांकि, भारत पिछले साल की ही तरह इस सम्मेलन में भाग नहीं लेगा क्योंकि वह इस परियोजना का विरोध कर रहा है। दरअसल, भारत के विरोध की मुख्य वजह "बेल्ट एंड रोड फोरम" के तहत चीन की ओर से प्रस्तावित चीन-पाकिस्तान आर्थिक कॉरिडोर (सीपीईसी) है। यह विवादास्पद कॉरिडोर पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) से होकर जाना है। इस गलियारे से चीनी शहर काशगर को पाकिस्तान के अरब सागर में स्थित ग्वादर बंदरगाह को जोड़ा जाएगा।

भारत का कहना है कि वह ऐसी परियोजना का हिस्सा नहीं बन सकता, जिसमें उसकी संप्रभुता और क्षेत्रीय एकीकरण का खयाल न रखा जाए। हालांकि, चीन का कहना है कि यह परियोजना विशुद्ध रूप से आर्थिक है। इससे कश्मीर के मुद्दे पर उसके तटस्थ रुख में कोई फर्क नहीं आएगा। चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने कहा कि इस परियोजना को लेकर चल रहे मतभेद विवाद का कारण नहीं बनेंगे।


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