गंदे पानी से १५२ एकड़ में आई बहार!
ठाणे, जल ही जीवन है। यह जानते हुए भी कई लोग पेयजल का दुरुपयोग कर रहे हैं। गटर के माध्यम से वह पानी गंदा होकर नदी या नालों में बह जाता है। इससे प्रदूषण पैâलता है। नाले के उस गंदे पानी को शुद्ध कर उसका उपयोग खेती या बागवानी में किया जा सकता है। डोंबिवली निवासी जल विशेषज्ञ डॉ. अजीत गोखले ने नासिक के पुलिस अकादमी परिसर में यह साबित करके दिखा दिया है। गटर के पानी से १५२ एकड़ के परिसर में बाहर आ गई है। जल प्रदूषण पर रोक के साथ-साथ पानी की बचत भी होने लगी है।
नासिक त्र्यंबक रोड स्थित पुलिस एकेडमी के शौचालयों, स्नानगृहों, कपड़ों की धुलाई तथा वैंâटीन आदि जगहों से करीब दो लाख लीटर गंदा पानी गटर के रास्ते नंदनी नदी में जा रहा था। नदी को जल प्रदूषण से बचाने के लिए अकेडमी के अधिकारी आगे आए। नेचुरल सोल्यूशन के वरिष्ठ जल विशेषज्ञ डॉ. अजीत गोखले के मार्गदर्शन में सार्वजनिक बांधकाम विभाग, सोनजे कंस्ट्रक्शन तथा बाबजी कंस्ट्रक्शन के सहयोग से रीड बेड प्रकल्प का निर्माण किया गया।
शुरुआत में अलग-अलग प्रजाति के ७० से ज्यादा १० हजार पौधों को परिसर में रोपा गया। ६ महीने बाद वे बड़े होकर पूरे परिसर में हरियाली बिखेर रहे हैं। इसके लिए ४ अलग-अलग जगहों पर छोटे-छोटे कृत्रिम तालाबों का निर्माण किया गया। पानी के ऊपर पैदा होनेवाली वनस्पतियों, कुमुदनी तथा कमल जैसे पौधों को लगाया गया। मछलियों को छोड़ा गया। जल शुद्धिकरण की लगातार निगरानी की गई। मछलियां जिंदा हैं तो इसका मतलब जल शुद्धिकरण प्रक्रिया ठीक ढंग से काम कर रही है। यह जानकारी जलमित्र अक्षय खोत ने दी है। अकादमी का क्षेत्रफल १५२ एकड़ में पैâला हुआ है। परिसर से निकलने वाले गंदे पानी को एक जगह इकट्ठा किया जाता है और एनरोबिक जीवाणुओं की मदद से एक बड़ी टंकी में स्थिर कर पानी को थोड़ा शुद्ध किया जाता है। उस पानी को दो से ढाई हजार चौरस मीटर तथा ढाई से तीन मीटर के तालाब में रीड बेड प्रणाली के माध्यम से लाया गया है। इनलेट चेंबर से सच्छिद्र पाइप के माध्यम से उस पानी को पत्थर, र्इंट खड़ी, बालू तथा मिट्टी के तह से होते हुए कीचड़ युक्त दूसरे गड्ढे में भेजा जाता है। यहां से उस पानी को आउटलेट चेंबर स्थित सच्छिद्र पाइप से इकट्ठा कर उसे पॉलिश युक्त तीसरे तालाब में लाया जाता है। इस प्रक्रिया में विशेष प्रकार की वनस्पतियों का उपयोग किया जाता है। उक्त सभी प्रक्रिया की वजह से जमीन के नीचे एक घना जाल तैयार हो जाता है। उसमें कीचड़ जनित अनेक जीव छोड़ दिए जाते हैं। इस प्रक्रिया के तहत उस जल का उपयोग पीने के लिए नहीं, बल्कि खेती या बागवानी के लिए ही किया जा सकता है। यह जानकारी डॉ. गोखले ने दी है।