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ठाणे, एक समय था जब हिंदुस्थानी बाजार पर चीनी वस्तुओं का कब्जा था। अब चीनी वस्तुओं का कब्जा धीरे-धीरे समाप्त होता नजर आ रहा है। इस वर्ष रक्षाबंधन के त्यौहार पर चीन द्वारा बनाई जानेवाली राखियों का बिकना कम हो गया है जबकि देसी राखियां अपना दम दिखाती नजर आ रही हैं। बाजार में देसी राखियों की बिक्री लगभग ९० प्रतिशत हो रही है, वहीं चीनी राखियां केवल १० प्रतिशत ही बिक रही हैं।
बता दें कि हिंदुस्थान का चीन से संबंध दिन-ब-दिन बिगड़ते जा रहे हैं। संबंध इतने बिगड़ गए हैं कि चीनी ऐप और वस्तुओं के आयात पर हिंदुस्थान में प्रतिबंध भी लगा दिया गया है। इस महीने २३ अगस्त को रक्षाबंधन का त्यौहार है। अभी से ही मुंबई और ठाणे के बाजार राखियों से सज चुके हैं। बाजारों में चीनी राखियां कम नजर आ रही हैं जबकि देसी राखियों ने बाजार पर कब्जा कर रखा है। ठाणे के बड़े बाजारों में शामिल जांभली नाका के बाजार देसी राखियों से भर चुके हैं। लोगों की भारी भीड़ राखियों की खरीददारी करती नजर आ रही है। बाजार के विक्रेता अबू बाबू शेख ने बताया कि रोज सैकड़ों की संख्या में महिलाएं राखी की खरीददारी करने उनकी दुकान पर आती हैं, जिसमें से ९० प्रतिशत महिलाएं देसी राखी की खरीदी करती है। चीनी राखियों की तुलना में देसी राखियां सस्ती हैं और साधारण हैं। देसी राखियां ५ रुपए से शुरू होकर ४५ रुपए तक बिक रही हैं, वहीं चीनी राखियों में केवल कार्टून की राखियां बच्चों को लुभाने के लिए खरीदी जा रही हैं, जिसमें छोटा भीम, मोटू-पतलू जैसी कार्टून की चित्रवाली राखियों का समावेश है, वहीं दूसरे दुकानदार ध्रुव पटवा ने बताया कि उन्हें लगा था कि प्रतिवर्ष की तरह इस वर्ष भी चीनी रखियों की बिक्री अधिक होगी इसलिए उन्होंने ज्यादा मात्रा में चीनी राखियों का स्टॉक खरीदा था लेकिन लोग देसी राखियों की खरीददारी में अधिक रुचि दिखा रहे हैं। बहुत ही कम मात्रा में चीनी राखियों की बिक्री हो रही है। लोग भी आते ही देसी राखी बोलकर ही राखियों की खरीददारी कर रहे है।


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