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मुंबई : ऑनलाइन के इस युग में ऑनलाइन क्राइम भी खूब बढ़ रहे हैं। साइबर पुलिस ने एक ऐसे गैंग का भंडाफोड़ किया है, जिसने पिछले करीब 30 महीने में 123 से ज्यादा फर्जी वेबसाइट्स बनाईं। मुंबई क्राइम ब्रांच चीफ मिलिंद भारंबे ने बताया कि इस गैंग ने एलपीजी गैस और पेट्रोल पंप डीलरशिप से जुड़ी दो फर्जी वेबसाइट्स से ही करीब 10 हजार 500 लोगों को ठगा। यह ठगी दस करोड़ रुपए से ज्यादा की है। कल्पना की जा सकती है कि बाकी फर्जी वेबसाइट्स से कितने लाख लोगों को ठगा गया होगा और उनसे किया गया घोटाला कितना बड़ा होगा। इस गैंग के तार बिहार के पटना जिले से जुड़े हुए हैं। हालांकि, कुछ आरोपियों को पश्चिम बंगाल और महाराष्ट्र में रत्नागिरी से भी पकड़ा गया है।
साइबर सेल से जुड़े सूत्रों का कहना है कि इस केस का मास्टरमाइंड करोड़पति है। उसने गिरफ्तारी से पहले पश्चिम बंगाल में पांच करोड़ रुपये कीमत की जमीन भी खरीदी है। किसी शूटआउट से पहले अमूमन रेकी शब्द का प्रयोग किया जाता है कि जिसे मारना है, वह किस वक्त घर या ऑफिस से निकलता है। लेकिन अब साइबर क्रिमिनल भी रेकी करने लगे हैं। मुंबई क्राइम ब्रांच चीफ मिलिंद भारंबे के अनुसार, इस केस का मास्टर माइंड सोशल मीडिया पर ऑनलाइन रेकी करता था कि कौन- कौन सी कंपनियों को सोशल मीडिया पर सर्च किया जा रहा है। उसके बाद वह ऐसी कंपनियों की हू-ब-हू मिलती वेबसाइट्स (फर्जी) बनाता था और फिर इन वेबसाइट्स के लिंक फेसबुक या अन्य सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म पर बतौर विज्ञापन डालता था। मास्टरमाइंड ने जिन कंपनियों की ऑनलाइन रेकी की या जिन शब्दों को सर्च किया, उनमें बजाज, स्नैपडील, नापतोल, रिलायंस टॉवर आदि प्रमुख हैं।
फर्जी वेबसाइट्स में मूल कंपनियों के नाम पर कुछ ऐसी स्कीम का लालच लिखा होता था कि पढ़ने वाला आसानी से ट्रैप में आ जाएं। करीब दो महीने पहले मुंबई का एक व्यक्ति भी ऐसे ही ट्रैप में फंसा। शिकायतकर्ता 2 नवंबर, 2020 को जब अपने मोबाइल पर फेसबुक देख रहा था, तभी एक गैस एजेंसी की डीलरशिप को लेकर उसे लिंक मिला। उसने जब लिंक ओपन किया, तो वहां उसे एक फोन नंबर मिला। शिकायतकर्ता ने फोन पर बात की। उसमें उन्हें बताया गया कि संबंधित वेबपेज पर एक फॉर्म मिलेगा, उसमें सारी व्यक्तिगत जानकारी लिख कर भेज दें। एजेंसी लेने के बदले एजेंसी के इच्छुक व्यक्ति को करीब 30 लाख रुपये के निवेश करने की बात थी, लेकिन आरोपियों की तरफ से शिकायतकर्ता को यह भी बताया गया कि सरकार की तरफ से इस एजेंसी को लेने के लिए उन्हें लोन भी आसानी से मिलेगा। हां, कुछ राशि उन्हें ऑनलाइन खुद भी ट्रांसफर करनी पड़ेगी।
शिकायतकर्ता से कुल 3 लाख 66 हजार रुपये मांगे गए थे। उन्होंने बताए गए एक अकाउंट नंबर पर कुछ लाख रुपये ट्रांसफर भी कर दिए। लेकिन उन्हें जब कोई गैस एजेंसी मिली नहीं, तब उन्होंने साइबर पुलिस की डीसीपी रश्मि करंदीकर से शिकायत की। इसी के बाद हुई जांच में इस गैंग का भंडाफोड़ हुआ।

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