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भारत की पहली निजी ट्रेन का संचालन रद्द करने का फैसला जितना चिंताजनक है, उतना ही विचारणीय भी। इंडियन रेलवे कैर्टंरग ऐंड टूरिज्म कॉर्पोरेशन लिमिटेड (आईआरसीटीसी) द्वारा संचालित इस टे्रन के पहिए आज के बाद रुक जाएंगे। लखनऊ-दिल्ली और मुंबई-अहमदाबाद के बीच तेजस एक्सप्रेस के परिचालन को रोकने का निर्णय किया गया है। यह गौर करने वाली बात है कि कोरोना संक्रमण की शुरुआत में लॉकडाउन से पहले ही 19 मार्च को तेजस का संचालन बंद कर दिया गया था। त्योहारों को देखते हुए तेजस एक्सप्रेस का 17 अक्तूबर को परिचालन फिर शुरू किया गया था। अब परिचालन को यात्रियों की कमी की वजह से अगर रद्द करना पड़ रहा है, तो यह विमर्श का गंभीर विषय है। जहां इन्हीं मार्गों पर दूसरी सार्वजनिक ट्रेनों का संचालन आसानी से हो रहा है, वहीं तेजस को अगर यात्रियों की कमी का सामना करना पड़ा है, तो इसके कुछ संकेत बहुत स्पष्ट हैं। पहला संकेत, इन टे्रनों का संचालन जिस लागत, कीमत और गुणवत्ता के आधार पर होना चाहिए, शायद वैसा नहीं हो पा रहा है। जब सार्वजनिक टे्रनों की पटरी पर वापसी सामान्य नहीं हो पा रही है, जब ज्यादातर विशेष ट्रेनों के जरिए ही यात्री अपने गंतव्य पर पहुंचने को विवश हैं, तब इन निजी टे्रनों के पास एक मौका था। वे अपनी सेवा से यात्रियों के दिल में जगह बना सकती थीं। कोरोना के समय सामान्य ट्रेनों में सफर सुरक्षित नहीं माना जाता है, तो क्या तेजस के जरिए यह कोशिश नहीं होनी चाहिए थी कि यात्रा को पूर्ण सुरक्षित बनाया जाता? बेशक, युग कोई भी हो, निजी क्षेत्र को अपनी सेवा गुणवत्ता के जरिए ही आगे बढ़ने में सहूलियत हो सकती है। यदि निजी सेवा को भी सरकारी सेवा की तरह ही चलाया जाएगा और उसकी लागत-कीमत ज्यादा वसूली जाएगी, तो निजी सेवा को जारी रखना आसान नहीं होगा। तेजस का बंद होना एक संकेत है, भारत में निजी क्षेत्र या निजी रेल सेवा वह जरूरी अंतर नहीं पैदा कर सकी, जो उसे अपनी जगह बनाने के लिए करना चाहिए था। 

कुछ महीने बाद भले तेजस को फिर शुरू कर दिया जाए, लेकिन जिस उम्मीद से तेजस की शुरुआत हुई थी, उसमें नाकामी ही हाथ लगी है। यह सवाल पहले ही उठाया जा रहा था कि महंगी तेजस रेल सेवा को यात्री कहां से मिलेंगे? तेजस के बंद होने से आईआरसीटीसी की छवि को भी नुकसान हुआ है। यह भी कहा जाएगा कि चूंकि आईआरसीटीसी सरकार से जुड़ी इकाई है, इसलिए तेजस पूरी तरह से निजी सेवा नहीं है। तो सवाल यह है कि क्या तेजस को भी सरकारी ढर्रे पर चलाने की कोशिश हुई है और सेवा को आकर्षक बनाए रखने के लिए पर्याप्त प्रयोग या नवाचार नहीं किए गए हैं? 

तेजस की नाकामी से एक और बात सामने आई है कि निजी क्षेत्र अपने लाभ के लिए ही सक्रिय रहता है और अर्थव्यवस्था व देश जब मुसीबत में हो, तब निजी क्षेत्र अपने हाथ खडे़ करने में भलाई समझ लेता है। तेजस से सबक सीखते हुए सार्वजनिक रेल सेवा में ही ज्यादा से ज्यादा सुधार और सुविधा बढ़ाने की जरूरत है। उन्हीं सेवाओं और उपक्रमों को पूरी मुस्तैदी से आगे बढ़ाना चाहिए, जो मुसीबत या जरूरत के समय काम आएं? सार्वजनिक सेवा में निजी क्षेत्र को अपनी जगह बनाने के लिए कुछ अलग ही आदर्श गढ़ने पड़ेंगे।


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