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मुम्बई: कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ महाराष्ट्र के किसानों द्वारा हस्ताक्षर किये हुए करीब पचास लाख से अधिक विरोध पत्र 17 नवंबर को केंद्र सरकार को मुंबई से दिल्ली भेजे जाएंगे। ये विरोध पत्र ट्रकों में भरकर दिल्ली के लिए रवाना किये जाएंगे। कांग्रेस पार्टी के कार्यकर्ता मुंबई स्थित तिलक भवन में ये पत्र पार्टी के प्रदेश प्रभारी एच. के. पाटिल को सौंपेंगे।
कांग्रेस पार्टी केंद्र सरकार द्वारा लाए गए कृषि क़ानूनों को किसान विरोधी मानती है और उसका कहना है कि यह किसानों के लिए आत्मघाती साबित होंगे। कांग्रेस का कहना है कि इन क़ानूनों से किसानों की उपज को सही मूल्य नहीं मिलने वाला है तथा सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य की प्रणाली को ही ख़त्म करने की तैयारी में है।
बात किसानों की हो या देश के छोटे कारोबारियों, लघु व्यवसायियों या दुकानदारों को लेकर किसी नीति या योजना बनाने की, नरेंद्र मोदी सरकार, अपने कॉरर्पोरेट मित्रों के हितों का संरक्षण या उनके लाभ के अनुरूप नीतियों को बनाने के लिए आरोपों के घेरे में रहती है। विपक्षी दल सरकार की अधिकांश नीतियों का यह कहते हुए विरोध करते हैं कि ये कुछ औद्योगिक घरानों को लाभ पहुंचाने तक ही सीमित हैं।
ऐसे में जब इस साल किसानों को लेकर केंद्र सरकार ने “एक देश एक बाजार” और किसानों को उनकी उपज के न्यूनतम समर्थन मूल्य के मुद्दे पर अध्यादेश जारी किया तो विपक्ष ने इसे बड़ा मुद्दा बना लिया और अनेक राज्यों में इसके ख़िलाफ़ आंदोलन शुरू कर दिए। जिन प्रदेशों में कांग्रेस की सरकारें हैं, वहां केंद्र सरकार के क़ानूनों के ख़िलाफ़ विधानसभा में प्रस्ताव पास किया गए।
इस आंदोलन के प्रथम चरण में कांग्रेस पार्टी देश के अन्य राज्यों के साथ-साथ 2 अक्टूबर से महाराष्ट्र में भी किसानों से इन क़ानूनों के ख़िलाफ़ हस्ताक्षर करा रही है। इस अभियान में देश भर में करीब 2 करोड़ किसानों के हस्ताक्षर कराने का लक्ष्य निर्धारित किया गया था, जिसके तहत महाराष्ट्र में भी पचास लाख किसानों व खेत मजदूरों ने हस्ताक्षर किए हैं।
कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष तथा वर्तमान सरकार में राजस्व मंत्री बाला साहब थोरात ने बताया कि 17 नवंबर को मुंबई के तिलक भवन स्थित कांग्रेस कार्यालय में पार्टी के प्रदेश प्रभारी एच. के. पाटिल को ये पत्र सौंपे जाएंगे। यहां से ट्रक में भरकर ये दिल्ली भेजे जाएंगे और केंद्र सरकार को सौंपकर विरोध दर्ज कराया जाएगा। उन्होंने बताया कि किसान विरोधी क़ानूनों के ख़िलाफ़ पार्टी के कार्यकर्ताओं ने करीब दस हजार गावों में पहुंचकर किसानों की समस्याओं को जाना तथा इस विधेयक की वजह से उन पर होने वाले प्रभावों के बारे में भी बताया।
दरअसल, राजस्थान, पंजाब या छत्तीसगढ़ की तरह महाराष्ट्र सरकार ने भी केंद्र सरकार के इन क़ानूनों पर विरोध जताया है। लेकिन यहां सरकार ने इनके कारण पैदा होने वाली नई समस्याओं और अदालत में मामला जाने पर क्या हो सकता है, इस बारे में अध्ययन कर फ़ैसला करने की नीति अख्तियार की है। सरकार ने इस मामले को विधि व न्याय विभाग और एडवोकेट जनरल के पास भेजा है।


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