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बताया गया है कि NCSC का कार्यकाल चार महीने पहले यानी मई में ही खत्म हो गया था। तब तक भाजपा नेता रामशंकर कठेरिया इस आयोग के अध्यक्ष और एल मुरुगन उपाध्यक्ष रहे थे। हालांकि, पिछले चार महीनों में NCSC के प्रमुख पद पर ही नियुक्ति नहीं हुई है। बता दें कि NCSC और NCST संवैधानिक संस्थाएं हैं, जबकि NCSK संसद द्वारा गठित कानूनी आयोग है।

जहां NCSC में प्रमुख पद पिछले चार महीने से खाली है, वहीं NCST और NCSK में उच्च पद इससे भी लंबे समय से खाली हैं। NCST के प्रमुख के तौर पर भाजपा के नंद कुमार साई का कार्यकाल इसी साल फरवरी में खत्म हो चुका है। NCSK प्रमुख गुजरात भाजपा के नेता वल्जीभाई जाला का कार्यकाल भी अप्रैल में खत्म हुआ है।

सरकार के सूत्रों के मुताबिक, इन संवैधानिक संस्थाओं के नए प्रमुखों पर विचार के लिए अब तक कोई बैठक नहीं हुई है। बता दें कि यह संस्थाएं दलितों-पिछड़ी जातियों से जुड़े मामलों में जांच के साथ उनके अधिकारों की रक्षा की निगरानी भी करती हैं। इसके अलावा NCSC और NCST के पास अधिकार है कि वे पिछड़ी जातियों के अधिकारों के उल्लंघन की शिकायत पर खुद ही जांच बिठाने का आदेश दे सकती हैं।

बता दें कि यह पहली बार नहीं है जब NCSC बिना अध्यक्ष की नियुक्ति के ही छोड़ा गया है। इससे पहले अक्टूबर 2016 में जब पीएल पूनिया का कार्यकाल खत्म हुआ था, तब भी इस पद को सात महीनों तक नहीं भरा गया था। बाद में कठेरिया को ही इस आयोग का प्रभार सौंपा गया।

गौरतलब है कि दलितों के खिलाफ किसी भी अपराध पर केंद्र और राज्य सरकारों को कार्रवाई करने का अधिकार है, हालांकि आयोग के दखल से किसी मामले में लापरवाही बरतने और शिकायतकर्ता की बात न सुने जाने की संभावना काफी कम रह जाती है। यह आयोग पीड़ितों को मुआवजा दिलाना भी सुनिश्चित करता है

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