Latest News

भारत के प्रति श्रीलंका की ताजा सकारात्मक टिप्पणी सराहनीय और स्वागत योग्य है। एक पड़ोसी देश की ओर से यह भलमनसाहत ऐसे समय में सामने आई है, जब भारत को इसकी ज्यादा जरूरत है। श्रीलंका के विदेश सचिव जयंत कोलंबेज ने साफ कर दिया है कि उनका देश ‘इंडिया फस्र्ट’ की नीति की पालना करेगा। यह नीति न केवल रणनीतिक, बल्कि सुरक्षा मामलों में भी कायम रहेगी। श्रीलंकाई विदेश सचिव की बात को इसलिए भी गंभीरता से लेने की जरूरत है, क्योंकि उन्होंने यह टिप्पणी राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे के हवाले से की है। यह बात हमारे मनोबल को बढ़ाने वाली है कि श्रीलंका भारत के लिए कतई रणनीतिक खतरा नहीं बनना चाहता। श्रीलंका को भारत से लाभ लेना चाहिए और इसी दिशा में उसकी विदेश नीति सक्रिय है। जहां तक सुरक्षा की बात है, तो इतिहास गवाह है, भारत ने खुद को जोखिम में डालकर भी श्रीलंका को सुरक्षित करने की कोशिश की है। दोनों के बीच केवल रणनीतिक-आर्थिक ही नहीं, बल्कि सामुदायिक-सामाजिक रिश्ते रहे हैं। दोनों की संस्कृतियों में कमोबेश समानता रही है। लिट्टे के दौर में भी दोनों देशों की सरकारों के बीच कभी रिश्ते पटरी से नहीं उतरे। 

हरेक देश को अपने हित में फैसले लेने और दुनिया के अन्य देशों से संबंध बनाने की जरूरत पड़ती है और इसमें कोई गलत बात नहीं है। श्रीलंकाई विदेश सचिव ने भी यही कहा है कि अपनी आर्थिक समृद्धि के लिए हम अन्य देशों के साथ भी संबंध बढ़ाएंगे। अपने हित में किसी भी देश को एक तटस्थ विदेश नीति की जरूरत पड़ती ही है और दुनिया में कूटनीतिक संबंधों को संभालने का यही सही तरीका भी है। भारत की ओर से भी दुनिया के तमाम देशों के साथ अच्छे संबंध रहे हैं। किसी देश से दुश्मनी की सोच भारत में कभी नहीं रही। यहां तक कि पाकिस्तान को भी हमने लंबे समय तक व्यापार के मामलों में तरजीही मुल्क का दर्जा दे रखा था। चीन को हमने भारत में फैलने की कितनी आजादी दी, यह बात दुनिया से छिपी नहीं है। दक्षिण एशिया में अगर पाकिस्तान और चीन को छोड़ दें, तो कमोबेश सभी देशों से भारत के संबंध अच्छे रहे हैं और परस्पर सहयोग और सबकी तरक्की में भारत की भी एक भूमिका रही है। 

दुनिया जानती है, चीन दक्षिण एशिया में भारत के पड़ोसियों को लुभाता रहा है। एक समय उसने श्रीलंका को भी लुभाया था। श्रीलंका ने खुशी में अपना एक महत्वपूर्ण बंदरगाह चीन को लीज पर सौंप दिया। रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण हंबनटोटा बंदरगाह को लेकर की गई गलती को श्रीलंकाई विदेश सचिव ने स्वीकार किया है, तो यह बात सभी के लिए गौर करने की है। आज दबंग दिखते चीन से हुए किसी समझौते को भूल मानना एक बड़ी बात है और यह भूल मानते हुए भारत को प्राथमिकता देने की घोषणा तो इतिहास में दर्ज करने लायक टिप्पणी है। श्रीलंका की इस स्वीकारोक्ति पर तमाम देशों का ध्यान जाना चाहिए। भारत ऐसा देश नहीं है, जो मदद करने के बाद किसी देश को समर्पण के लिए मजबूर करता हो। भारत ऐसा देश नहीं है, जो किसी की हथेली पर कुछ रखने के बाद उसकी बांह मरोड़ता हो। श्रीलंका के सत्ता-प्रतिष्ठान को अतीत में भारत की तुलना में चीन के अधिक निकट देखा गया था, लेकिन अब वहां सोच में जो सुधार नुमाया है, तो उसे बल देने के लिए भारत को भी हरसंभव पहल जारी रखनी चाहिए।


Weather Forecast

Advertisement

Live Cricket Score

Stock Market | Sensex

Advertisement