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नयी दिल्ली : आखिरकार, दिनभर की माथापच्ची के बाद सीडब्ल्यूसी ने सोनिया गांधी को ही कांग्रेस अध्यक्ष पद पर बने रहने का आग्रह किया और वो मान गईं। इस तरह, गांधी परिवार की कांग्रेस में पकड़ और मजबूत हुई है और वरिष्ठ नेताओं का ग्रुप 23 एक तरह से अलग-थलग पड़ गया। आइए कांग्रेस पार्टी में सोनिया गांधी के अब तक के सफर पर डालते हैं एक नजर...1997 में सोनिया गांधी ने कांग्रेस पार्टी की प्राथमिक सदस्यता ली और दिसंबर में आयोजित कोलकाता सम्मेलन में भाग लिया। अगले वर्ष मार्च महीने में कांग्रेस पार्टी ने उन्हें अपना अध्यक्ष चुन लिया। दरअसल, 1991 के लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या के बाद से ही कांग्रेस का नेतृत्व सोनिया गांधी को सौंपने की कवायद होने लगी थी, लेकिन सोनिया ने अपने परिवार को राजनीति से दूर रखने की बात कहकर लगातार आ रहे प्रस्तावों को ठुकराती रही थीं। आखिरकार उन्होंने मार्च 1998 में होनेवाले लोकसभा चुनाव के लिए पार्टी के पक्ष में प्रचार करने का ऐलान कर दिया। दिसंबर 1997 के कोलकाता सम्मेलन में उन्होंने कांग्रेस की सदस्यता भी ग्रहण कर ली। फिर 14 मार्च, 1998 को कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में 82 वर्षीय सीताराम केसरी को कांग्रेस अध्यक्ष छोड़ने को कहा गया। इस तरह कांग्रेस में सत्ता परिवर्तन हुई और कमान फिर से गांधी परिवार के हाथों आ गई।

मई 1999 में लोकसभा चुनाव से ठीक पहले तीन दिग्गज नेताओं शरद पवार, पीए संगमा और तारिक अनवर ने सोनिया गांधी के खिलाफ बगावत कर दी। उन्होंने कहा कि सोनिया गांधी विदेशी मूल की महिला हैं, इसलिए वो भारत की भाग्य विधाता नहीं हो सकतीं। तीनों ने कांग्रेस से अलग होकर राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) का गठन किया। अब तारीक अनवर फिर से कांग्रेस में आ चुके हैं। इस घटना पर सोनिया ने दुख का इजहार किया और चिट्ठी लिखी जिसमें उन्होंने कहा कि भारत ही उनकी मातृभूमि है जो उनको अपने प्राण से भी प्यारी है। इस चिट्ठी के साथ ही उन्होंने पार्टी अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया। पार्टी ने सोनिया से इस्तीफा वापस लेने का आग्रह किया। उधर, बगावत के लिए शरद पवार, पीए संगमा और तारिक अनवर को पार्टी से निष्कासित कर दिया गया।

2004 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की अगुवाई वाले संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (UPA) को बीजेपी की अगुवाई वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) के मुकाबले ज्यादा सीटें आईं। यूपीए को इस चुनाव में कुल 145 जबकि एनडीए 138 सीटें आईं। स्वाभाविक था कि प्रधानमंत्री के तौर पर सोनिया गांधी ही पहली प्राथमिकता थीं। ऐसे मौके पर बीजेपी नेता सुषमा स्वराज ने प्रतिज्ञा कर डाली कि अगर सोनिया भारत की प्रधानमंत्री बनेंगी तो वो अपना मुंडन करवा लेंगी। सोनिया ने विपरीत परिस्थिति को भांपते हुए बड़ा पासा फेंका। उन्होंने मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री बना दिया। सोनिया ने कहा कि उन्होंने अपनी अंतरात्मा की आवाज सुनी।

मार्च 2006 में सोनिया गांधी को लोकसभा की सदस्यता से इस्तीफा देना पड़ा। मामला ऑफिस ऑफ प्रॉफिट से जुड़ा हुआ था। दो महीने बाद मई में वो दोबारा जीतकर लोकसभा सदस्य बनीं। दरअसल, सोनिया गांधी तब मनमोहन सिंह सरकार की राष्ट्रीय सलाहकार परिषद (NAC) की चेयरपर्सन भी थीं। उन्हें कैबिनेट मिनिस्टर का रैंक मिला हुआ था। सोनिया का मामला तब प्रकाश में आया जब कांग्रेस पार्टी ने समाजवादी पार्टी की राज्यसभा सदस्य जय बच्चन के उत्तर प्रदेश फिल्म डिविजन की चेयरपर्सन के पद पर नियुक्ती पर सवाल उठाया। सोनिया को 23 मार्च, 2006 को लोकसभा सदस्यता त्यागनी पड़ी।

2017 में सोनिया गांधी ने 19 सााल तक कांग्रेस अध्यक्ष पद पर रहने के बाद अपने पुत्र राहुल गांधी को यह जिम्मेदारी सौंप दी। 2014 के लोकसभा चुनाव में परास्त होने के बाद 2019 के अगले लोकसभा की तैयारियों के लिए 47 वर्षीय राहुल गांधी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ खड़ा किया गया। इससे पार्टी कार्यकर्ताओं में एक नया जोश देखा गया। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने राहुल के अध्यक्ष बनने से कुछ दिनों पहले ही उन्हें 'कांग्रेस की डार्लिंग' बताया था।


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