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मुंबई : मुंबई के निजी अस्पतालों में काम करने वाले 12000 कंसल्टेंट डॉक्टर इन दिनों बीएमसी के फरमान से काफी परेशान हैं. बीएमसी ने सभी डॉक्टरों को कहा है कि व्यक्ति के बिना शारीरिक जांच (फिजिकल एग्जामिनेशन) के कोविड टेस्टिंग के लिए भेजने पर उनका लाइसेंस रद्द किया जाएगा और उनके खिलाफ एफआईआर भी दर्ज होगी. इस बात से नाराज एसोसिएशन ऑफ मेडिकल कंसल्टेंट मुंबई (एएमसी) ने बीएमसी आयुक्त को पत्र लिख उक्त फरमान को वापस लेने के लिए कहा है.

बीएमसी के फरमान से डॉक्टरों में काफी रोष है. एएमसी के अध्यक्ष डॉ दीपक बैद ने बताया कि एमसीआई और नीति आयोग ने कोविड के शुरुआत में ही टेलीमेडिसिन का ड्राफ्ट तैयार किया. यह ड्राफ्ट इसलिए बनाया गया ताकि बिना मरीज के संपर्क में आए कॉल या वीडियो कॉल के माध्यम से उसकी स्वास्थ्य तकलीफ को जाना जाए और  उपयुक्त उपचार दिया जाए. टेस्टिंग प्रोटोकॉल तय करने वाली इंडियन मेडिकल कॉउन्सिल ऑफ रिसर्च (आईसीएमआर) ने भी कहा है कि यदि किसी मरीज को बुखार और खांसी आती है तो उसकी कोविड जांच की जानी चाहिए. यदि कोई मरीज उक्त स्वास्थ्य समस्या से जूझ रहा है तो उसे फिजिकल एग्जामिनेशन की क्या जरूरत. उसे टेस्टिंग के लिए क्यों न भेजा जाए. बीएमसी हम से फॉर्म भरवा रही है कि यदि हम बिना फिजिकल एग्जामिनेशन के मरीज को कोविड टेस्ट लिखते हैं तो हमारा लाइसेंस रद्द किया जाएगा और हमारे खिलाफ मामला दर्ज किया जाए. अब भला कौन डॉक्टर अपने ही पैर पर कुल्हाड़ी मारेगा. हमारी गवर्निंग बॉडी मेडिकल कॉउन्सिल ऑफ इंडिया (एमसीआई) है. लाइसेंस रद्द करने का अधिकार एमसीआई को है.बीएमसी क्यों बीच में पड़ रही है.

एएमसी के अध्यक्ष ने कहा हम एमसीआई और आईसीएमआर की गाइडलाइन का पालन कर रहे हैं. न जाने क्यों बीएसमी डॉक्टरों पर अपना फरमान थोप रही है. वो क्या चाहते हैं हम कोविड के लक्षण वाले व्यक्ति के बिना संपर्क में आये टेस्ट के लिए न भेजें ताकि वो लोग दूसरों को भी संक्रमित करें और खुद भी इलाज के लिए देरी से पहुंचे, या फिर बीएमसी चाहती नहीं कि लोगों की जांच हो और मामलों को छुपाया जाए.


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