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भाजपा ने महाराष्ट्र व हरियाणा की राजनीति में नए सामाजिक समीकरणों से विपक्ष की दिक्कतें तो बढ़ाई हैं, लेकिन अब यह उसके लिए भी कुछ क्षेत्रों में समस्या खड़ी कर रहे हैं। हरियाणा में जाट व महाराष्ट्र में मराठा समुदाय को लेकर भाजपा चिंतित है। इन दोनों समुदाओं को साधने के लिए भाजपा को जमीनी स्तर पर काफी मेहनत करनी पड़ रही है। सत्ता के करीब रहे यह दोनों समुदाय भाजपा के शासनकाल में सत्ता के शीर्ष से बाहर हैं। पार्टी को आशंका है कि इन वर्गों की नाराजगी का असर उसके बड़े चुनाव लक्ष्यों पर पड़ सकता है।

सूत्रों के अनुसार, भाजपा को विभिन्न क्षेत्रों से जो अंदरूनी रिपोर्ट मिल रही हैं उनमें यह बात सामने आ रही है कि विपक्ष हरियाणा में जाट समुदाय व महाराष्ट्र में मराठा सुमदाय को भाजपा के खिलाफ एकजुट करने की कोशिश कर रहा है। गौरतलब है कि हरियाणा की अधिकांश राजनीति जाट केंद्रित व महाराष्ट्र में मराठा वर्चस्व वाली रही है। भाजपा ने पिछली बार राजनीतिक व सामाजिक समीकरणों में बदलाव करते हुए गैर जाट व गैर मराठा वर्चस्व वाली राजनीति को बढ़ावा दिया, जिसका उसे खासा लाभ भी हुआ। 

हरियाणा में मनोहर लाल खट्टर सरकार के दौरान हुए जाट आरक्षण आंदोलन को विपक्ष फिर से गरमाने की कोशिश कर रहा है। हालांकि, विपक्ष के विभाजित होने से भाजपा के लिए राह आसान बनी हुई है। अगर विपक्ष जाट समुदाय को प्रभावित कर लेता है तो उससे ज्यादा फर्क नहीं पड़ेगा। क्योंकि राज्य में गैर जाट भावनाएं भी इससे भड़क सकती हैं। इससे भाजपा के 75 प्लस का लक्ष्य बिगड़ सकता है।

सत्ता नहीं, बड़े लक्ष्य के लिए मुश्किलें

विधानसभा चुनाव में विपक्षी दल व उसने नेता अंदरूनी तौर पर इन दोनों मजबूत समुदायों को भाजपा के खिलाफ खड़ा करने की कोशिश कर रहे हैं। भाजपा ने महाराष्ट्र में राज्य सरकार के वरिष्ठ मंत्री विनोद तावड़े का टिकट काटा है जो पार्टी में प्रभावी मराठा नेता माने जाते हैं। राज्य में एनसीपी की मराठा समुदाय में गहरी पैठ है और वह इसे मुद्दा बनाकर अपने पक्ष में मोड़ने की कोशिश कर रही है। इससे भाजपा का बड़ी जीत का लक्ष्य बिगड़ सकता है। हालांकि, महाराष्ट्र में भाजपा-शिवसेना गठबंधन के सामने विपक्ष काफी कमजोर है और जो कुछ चुनौती मिल रही है वह एनसीपी से ही मिल रही है। 


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