शांति का नोबेल: इथोपिया के 'नेल्सन मंडेला' हैं अहमद
नोबेल शांति पुरस्कार जीतने वाले 43 वर्षीय अबी अहमद किसी अफ्रीकी देश के सबसे युवा राष्ट्राध्यक्ष हैं। हिंसा प्रभावित अफ्रीका में शांति और सकारात्मकता की नई लहर पैदा करने के लिए उन्हें ‘इथोपिया के नेल्सन मंडेला’ की ख्याति से नवाजा जाता है।
इरिट्रिया से सीमा विवाद सुलझाया
अप्रैल 2018 में गृहयुद्ध से जूझ रहे इथोपिया की सत्ता संभालने के बाद से ही अहमद ने इरिट्रिया से संबंध सुधारने की कवायद तेज कर दी थी। जुलाई में एरिट्रिया की राजधानी असमारा में हुई ऐतिहासिक मुलाकात में उन्होंने अफवेर्की के साथ मिलकर दो दशक पुराना सीमा विवाद हल करने का ऐलान किया। साल के अंत में दोनों देशों ने शांति समझौते पर मुहर लगाई। इसी के साथ इथोपिया और इरीट्रिया के बीच हवाई सेवा बहाल हो गई। दोनों देशों में एक-दूसरे के दूतावास दोबारा खुल गए। व्यापारिक संबंधों को भी जीवन मिला।
इथोपिया में उदारवादी सुधार शुरू किए
अहमद ने प्रधानमंत्री काल के शुरुआती सौ दिनों में देश से इमरजेंसी हटाई। हजारों राजनीतिक बंदियों को रिहा किया। जिन असंतुष्ट नेताओं और कार्यकर्ताओं को इथोपिया से निर्वासित किया गया था, उन्हें स्वदेश लौटने की इजाजत दी। मीडिया पर लागू सेंसरशिप खत्म की। प्रतिबंध झेल रहे विपक्षी दलों को मान्यता दी। भ्रष्टाचार के आरोपी सैन्य और सियासी नेताओं को बर्खास्त किया। अहमद ने इथोपिया सरकार में महिलाओं की भागीदारी भी बढ़ाई। उन्होंने अपने मंत्रिमंडल में रक्षा मंत्री सहित आधे पद महिलाओं को सौंपे।
अंतरराष्ट्रीय विवाद निपटाने में निर्णायक भूमिका
सितंबर 2018 में अहमद ने इरिट्रिया और जिबूती के बीच वर्षों से चली आ रही राजनीतिक शत्रुता तो खत्म कर कूटनीतिक रिश्तों को सामान्य बनाने में अहम भूमिका निभाई। उन्होंने केन्या और सोमालिया में समुद्री इलाके को लेकर चले आ रहे संघर्ष को खत्म करने में मध्यस्थता की। सूडान के सैन्य शासन और प्रदर्शनकारियों के बीच सुलह करवाने में भी वह निर्णायक रोल में रहे। अहमद अफ्रीका में रंगभेद के खिलाफ आंदोलन चलाने वाले मंडेला के बहुत बड़े प्रशंसक हैं। वह अक्सर उनकी तस्वीर वाली टी-शर्ट पहने नजर आते हैं।
इरिट्रियाई राष्ट्रपति की भी तारीफ
नोबेल समिति ने शांति स्थापना के लिए इरिट्रिया के राष्ट्रपति इजैज अफवेर्की की कोशिशों को भी सराहा। उसने कहा, ‘शांति किसी एक पक्ष के प्रयासों से संभव नहीं है। जब अहमद ने दोस्ती का हाथ बढ़ाया तो अफवेर्की ने उसे तहेदिल से स्वीकारा। इससे दोनों देशों के बीच शांति स्थापना की प्रक्रिया आगे बढ़ पाई।’