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मुंबई : भारतीय जनता पार्टी के मुकाबले शिवसेना के दबदबे का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि बाला साहेब ठाकरे बीजेपी के लिए एक कोड वर्ड बनाए हुए थे, जैसे- कमला बाई। उनकी जिंदगी में शिवसेना कभी बीजेपी के आगे झुकी नहीं बल्कि बाला साहेब के लिए यह मशहूर है कि वह कहा करते थे कि 'कमला बाई वही करेगी जो मैं कहूंगा'। एक-दो नहीं बल्कि तमाम मौकों पर उन्होंने इस बात की परवाह नहीं की कि सहयोगी दल के रूप में बीजेपी का क्या स्टैंड है?
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2007 के राष्ट्रपति के चुनाव में उन्होंने बीजेपी उम्मीदवार भैरो सिंह शेखावत के बजाय कांग्रेस उम्मीदवार प्रतिभा पाटिल को समर्थन देकर सबको चौंका दिया था। अपनी पूरी जिंदगी वह बीजेपी के किसी नेता के घर राजनीतिक मुद्दों पर बात करने नहीं गए, बल्कि बीजेपी को जब भी जरूरत हुई उसके आला नेताओं ने ही मुंबई पहुंचकर बाला साहेब के दरबार में हाजिरी लगाई। बाला साहेब ने जो कह दिया, बस वही अंतिम वाक्य बना और बीजेपी को नतमस्तक होकर उसे मानना पड़ा लेकिन यह सब उस दौर की बात है जब अमित शाह बीजेपी के अध्यक्ष नहीं थे।
शाह के आने से बदली तस्वीर
अमित शाह के अध्यक्ष बनने के बाद नए रूप में आई बीजेपी के मुकाबले शिवसेना को अपना अस्तित्व बचाने की चिंता सताए जा रही है। उसी मजबूरी के तहत शिवसेना पहली बार महाराष्ट्र विधानसभा के चुनाव में बीजेपी के 'जूनियर पार्टनर' के रूप में चुनाव लड़ने को मजबूर हुई है। 2014 के चुनाव में बीजेपी का जूनियर न बनने की जिद के चलते अलग होकर चुनाव लड़ने का हश्र देख चुकी है। बीजेपी के लिए अब शिवसेना मजबूरी नहीं, बल्कि शिवसेना के लिए बीजेपी मजबूरी बन गई है। जूनियर पार्टनर के रूप में शिवसेना को राज्य के चुनाव में महज 124 सीटें मिली हैं। इस समीकरण के आधार पर शिवसेना को राज्य में अकेले अपने बल पर सरकार बनाने की उम्मीदों को छोड़ना ही पड़ा।

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