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  मुंबई में हुए एक खास अध्ययन में समुद्री मछलियों की आंत में प्लास्टिक मिलने का खुलासा हुआ है, जिसके बाद बॉम्बे हाईकोर्ट (Bombay High Court) ने स्वतः संज्ञान लिया है. समुद्री मछलियां इंसानों के लिए हानिकारक साबित हो सकती हैं. इन मछलियों की आंत में पाये गये छोटे-छोटे प्लास्टिक के कण इसे खाने वाले लोगों में बड़ी बीमारी का कारण बन रहे हैं. समुद्री प्रदूषण पर सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ फिशरी एजुकेशन (Central Institute of Fishery Education) की अध्ययन रिपोर्ट से चिंतित बॉम्बे हाई कोर्ट ने मामले में स्वतः संज्ञान लिया है. बॉम्बे हाई कोर्ट ने माना है कि माइक्रोप्लास्टिक युक्त कचरा न सिर्फ समुद्री जीवों के लिए खतरनाक है, बल्कि इंसानों को भी नुकसान पहुंचाएगा. कोर्ट ने कहा कि माइक्रोप्लास्टिक नाले के रास्ते समंदर तक पहुंच रहा है. यह भयावह है. इसका असर मुंबई के सभी समुद्री किनारों पर पड़ेगा. अदालत ने कहा कि वो इस मामले पर स्वत: संज्ञान लिया है. अध्ययन के अनुसार, मनुष्यों द्वारा खाए जाने वाले मछली की आंतों में माइक्रोप्लास्टिक यानी सूक्ष्म पॉलीथीन कण पाए गए हैं. कोर्ट ने कहा कि इस मामले में महाराष्ट्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय और फिशरी इंस्टिट्यूट के सहयोग  सीआईएफई द्वारा किए गए अध्ययन में पाया गया है कि जब लोग मुंबई के तट से पकड़ी गई 100 ग्राम मछली खाते हैं तो वे एक तरह से माइक्रोप्लास्टिक के 80 कण खा रहे हैं, जो कैंसर बीमारी की वजह बन सकते हैं. फिजिशियन डॉ यश गोसावी ने कहा कि प्लास्टिक शरीर के लिए हानिकारक है. इंसानी शरीर में प्लास्टिक अलग अलग जरिये से पहुंच रहा है. कई लोगों के अंदर से निकले प्लास्टिक के कण प्रमाण हैं. यह कैंसर, थायराइड, रीप्रोडक्टिव सिस्टम में गड़बड़ी और आंतों से जुड़ी कई बीमारियों का कारण बनते हैं. समुद्री प्रदूषण पर वकील गॉडफ्रे पिमेंटा खुद तीन बार से ज्‍यादा याचिका दाखिल कर चुके हैं. वह बताते हैं कि कैसे खतरनाक केमिकल और प्लास्टिक कचरा समुद्र को प्रदूषित कर रहा है. पिमेंटा कहते हैं कि कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी को जन्म देने वाले इस बड़ी लापरवाही पर फौरन ब्रेक जरूरी है. पिमेंटा ने कहा कि मैं कई बार याचिकाएं दाखिल कर चुका हूं. कोर्ट ने देरी से संज्ञान लिया है, उन्‍हें और पहले संज्ञान लेना चाहिए था. उन्‍होंने कहा कि पानी काला हो रहा है, प्लास्टिक की मात्रा कचरे में बढ़ती जा रही है, मछलियां मर रही हैं. सोचिये इंसान इन मछलियों को खाकर कितनी घातक बीमारियों को न्योता दे रहे हैं. प्लास्टिक पर बैन नाम के लिए है. यह हर जगह मिल रहा है और इस पर कोई बैन नहीं है. एक ओर, मुंबई क्षेत्र के निवासी हर साल 2 लाख मीट्रिक टन से अधिक मछली खाते हैं. दूसरी ओर मुंबई में हर दिन 408 टन प्लास्टिक कचरा निकलता है, जो 500 शिपिंग कंटेनरों को भरने के लिए पर्याप्त है. इसका अधिकांश हिस्सा और अनुपचारित सीवेज शहर से समुद्र में चला जाता है.एक ओर, मुंबई क्षेत्र के निवासी हर साल 2 लाख मीट्रिक टन से अधिक मछली खाते हैं. दूसरी ओर मुंबई में हर दिन 408 टन प्लास्टिक कचरा निकलता है, जो 500 शिपिंग कंटेनरों को भरने के लिए पर्याप्त है. इसका अधिकांश हिस्सा और अनुपचारित सीवेज शहर से समुद्र में चला जाता है.मुंबई का करीब 25% घरेलू कचरा, जो ज्यादातर झुग्गी-झोपड़ियों से आता है, सीधे नालों और खाड़ियों में बहता है. मछलियों के अंदर मिली प्लास्टिक की यह मात्रा इंसानी सेहत के लिए "साइलेंट किलर" है.


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