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मुंबई : महाराष्ट्र सरकार ने बंबई उच्च न्यायालय से कहा है कि वह 14 अक्टूबर तक ख्वाजा यूनुस की हिरासत में मौत के मामले में किसी अन्य विशेष लोक अभियोजक (एसपीपी) की नियुक्ति नहीं करेगी। अदालत ने कहा कि राज्य सरकार ने विशेष लोक अभियोजक धीरज मिराजकर को “बिना कोई कारण बताए” हटा दिया था, जिन्हें सितंबर 2015 में इस मामले में प्रतिनिधित्व करने के लिए नियुक्त किया गया था।
न्यायमूर्ति प्रसन्ना बी वराले और न्यायमूर्ति नितिन आर बोरकर की खंडपीठ 2002 के घाटकोपर विस्फोट के संदिग्ध ख्वाजा यूनुस की मां आसिया बेगम की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिनकी 2003 में पुलिस हिरासत में मौत हो गई थी, जिन्होंने मिराजकर को मुकदमे से हटाने के सरकार के फैसले को चुनौती दी थी।
याचिकाकर्ता ने मुंबई के पूर्व पुलिस आयुक्त परमबीर सिंह के खिलाफ भी कार्रवाई की मांग करते हुए कहा कि हिरासत में मौत के मामले में आरोपी चार पुलिसकर्मियों की बहाली, जिसमें अब बर्खास्त मुंबई पुलिस अधिकारी सचिन वाजे भी शामिल हैं, अदालत के पहले के आदेशों का उल्लंघन है। अतिरिक्त लोक अभियोजक (एपीपी) संगीता शिंदे ने स्थगन की मांग करते हुए कहा कि महाधिवक्ता (एजी) आशुतोष कुंभकोनी याचिका में अदालत को संबोधित करेंगे।
इस पर बेगम का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता मिहिर देसाई ने कहा कि कुंभकोनी ने 16 जुलाई, 2018 को सुनवाई के दौरान मौखिक बयान दिया था कि जब तक मामले की सुनवाई नहीं हो जाती, तब तक नए एसपीपी की नियुक्ति की प्रक्रिया आगे नहीं बढ़ेगी।

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