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मुंबई, नोटबंदी और लॉकडाउन के कारण 23 करोड़ लोग नए सिरे से गरीबी रेखा से नीचे आ गए हैं. लोगों पर भीख मांगने का समय आ गया है. सड़कों पर, सार्वजनिक स्थानों पर भीख मांगना कानूनन अपराध है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने अब कहा है कि अगर सरकार गरीबों के लिए कुछ नहीं कर सकती है, तो भीख मांगना एक अधिकार है!
'अच्छे दिन' का नारा, फिर भी पहले से 23 प्रतिशत ज्यादा भारतीयों का गरीबी में गुज़ारा, आज के 'सामना' में संजय राउत का 'रोखठोक' लेख
शिवसेना के मुखपत्र ‘सामना’ के संपादकीय में या रविवार के दिन अपने ‘रोखठोक’ नाम से लिखे जाने वाले लेख में शिवसेना सांसद संजय राउत अलग-अलग विषयों पर अपने विचार लिखते हैं. कई बार इसमें वे विपक्षी पार्टियों के नेताओं और नीतियों पर कटाक्ष किया करते हैं. कभी-कभी वे सामाजिक मुद्दों पर भी लिखा करते हैं. आज के ‘सामना’ में उनके रोखठोक’ लेख का विषय ‘भीख मांगने का अधिकार’ है.
सरकार गरीबों के लिए कुछ नहीं कर सकती तो भीख मांगना उनका अधिकार
‘रोटी, कपड़ा, मकान और भीख मांगने का अधिकार’ मुद्दे पर विचार रखते हुए संजय राउत लिखते हैं कि नोटबंदी और लॉकडाउन के कारण 23 करोड़ लोग नए सिरे से गरीबी रेखा से नीचे आ गए हैं. लोगों पर भीख मांगने का समय आ गया है. सड़कों पर, सार्वजनिक स्थानों पर भीख मांगना कानूनन अपराध है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने अब कहा है कि अगर सरकार गरीबों के लिए कुछ नहीं कर सकती है, तो भीख मांगना एक अधिकार है!
नोटबंदी और लॉकडाउन की वजह से  23 प्रतिशत लोग गरीबी रेखा से नीचे गए
नोटबंदी का निर्णय भारी पड़ गया. अब कोरोना काल में लगे लॉकडाउन की वजह से देश के 23 फीसदी लोग गरीबी रेखा से नीचे चले गए. उनमें से बड़ी जनसंख्या ने रोजगार और आजीविका खो दिया और एक दिन उन पर भीख मांगने का वक्त आ जाएगा. देश में भिखारियों की संख्या बढ़ रही है और इसे एक सामाजिक समस्या के रूप में देखा जाना चाहिए. हमारे देश में भिखारियों की सही संख्या कितनी है? मार्च २०२१ के सरकारी आंकड़ों के मुताबिक देश में भिखारियों की संख्या चार लाख से ज्यादा है. अर्थात निश्चित तौर पर कितना? यह दुविधा ही है.

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