Latest News

मुंबई, बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक दिवंगत महिला की वसीयतनामा को लागू कराने के लिए 31 साल पुरानी याचिका पर सुनवाई करते हुए अदालत ने इसे न्यायिक प्रणाली का एक दुखद और भयानक पहलू करार दिया।

जस्टिस गौतम पटेल ने महिला के चार बच्चों द्वारा दायर याचिका पर 10 मार्च को इस पर फैसला सुनाया। उनमें से दो बच्चों की मौत हो चुकी है और अन्य दो की उम्र 80 साल से अधिक हो चुकी है।

हाईकोर्ट ने पाया कि याचिका तीन दशकों से लंबित है, जबकि इस वसीयत पर किसी को कोई आपत्ति नहीं थी। आदेश के मुताबिक यह वसीयत रसूबाई चिनॉय की थी, जिनका अक्तूबर 1989 में निधन हो गया था। 

उन्होंने 1980 में वसीयतनामा बनवाई थी, जिसमें उन्होंने सभी संपत्तियों को अपनी रिश्तेदार की धर्मार्थ संस्था के नाम कर दिया था। उनके पांच बच्चे थे, जिनमें से एक पाकिस्तान के कराची में रहते हैं।

अन्य चार बच्चों ने चिनॉय के निधन के बाद हाईकोर्ट पहुंचे और कहा कि वह इस वसीयत पर कोई वाद-विवाद नहीं करना चाहते, अत: कोर्ट इसे लागू करे ताकि यह संपत्ति धर्मार्थ संस्था को दी जा सके।

उस वक्त हाईकोर्ट की रजिस्ट्री ने वसीयत के सत्यापित न होने के कारण कहा कि यह उत्तराधिकार कानून की धारा 63 के अनुरूप नहीं है, इसलिए इसे वैध वसीयत के तौर पर नहीं माना जा सकता।

जस्टिस पटेल ने अपने फैसले में कहा कि चिनॉय कची मेमन समुदाय की थीं और उनकी वसीयत मुस्लिम कानून के तहत है इसलिए उसमें सत्यापन की जरूरत नहीं है। उन्होंने कहा कि चिनॉय की वसीयत पर भारतीय उत्तराधिकार कानून लागू नहीं होता।

Weather Forecast

Advertisement

Live Cricket Score

Stock Market | Sensex

Advertisement