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किसानों के आंदोलन का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचना जितना जरूरी था, उतना ही स्वाभाविक भी है। वैसे तो किसानों के आंदोलन को लगभग तीन महीने पूरे होने जा रहे हैं, लेकिन जब आंदोलन पंजाब में था, तब ज्यादा चिंता नहीं थी। अब विगत तीन सप्ताह से दिल्ली घेरने का आंदोलन ऐसे मोड़ पर पहुंच गया है, जब सुप्रीम कोर्ट में गुहार और सुनवाई जरूरी हो गई है। छह दौर की औपचारिक और अनेक दौर की अनौपचारिक वार्ताओं के बावजूद सरकार व किसान संगठन परस्पर सहमत तो दूर, आश्वस्त भी नहीं हो पा रहे हैं। उनमें परस्पर विश्वास की कमी देश और दुनिया के सामने स्पष्ट हो गई है। ऐसे में, सुप्रीम कोर्ट का सुनवाई के लिए आगे आना समय की मांग है। न्यायपालिका में लोगों का विश्वास अभी भी बरकरार है। किसी भी जटिल समस्या के समय अदालती हस्तक्षेप की परंपरा गलत भी नहीं है, जहां राजनीति से परे, संविधान की रोशनी में न्यायाधीश शांत मन से किसी फैसले या निर्देश पर विचार करते हैं। बडे़-बडे़ विवादित मामलों को सुप्रीम कोर्ट में सुलझते और लोगों द्वारा स्वीकार करते देखा गया है। ऐसे में, किसान आंदोलन के समाधान की उम्मीद का बढ़ना वाजिब है।
सुप्रीम कोर्ट को इस पूरे मामले पर विचार करने में समय लगेगा, लेकिन पहले दिन ही कोर्ट ने दो बातों को स्पष्ट कर दिया। पहली, सरकार और किसानों को समिति बनाकर बातचीत करनी चाहिए। दूसरी, समस्या को सहमति से सुलझाना चाहिए। इसके साथ ही, सुप्रीम कोर्ट ने किसान संगठनों के साथ-साथ केंद्र सरकार, हरियाणा और पंजाब सरकार को नोटिस भेजा है। दरअसल, सर्वोच्च न्यायालय में दायर जनहित याचिकाओं में धरने पर बैठे किसान आंदोलनकारियों को सड़क से हटाने की अपील की गई है। याचिकाकर्ताओं के वकील ने भी दलीलें पेश कीं और सरकार ने भी अपना पक्ष रखा, इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम किसानों के पक्ष को भी सुनना चाहते हैं। अत: किसान संघों को नोटिस जारी किया गया है और अब उन्हें अपना जवाब दाखिल करना है।
मामला केवल किसान आंदोलन या कृषि कानूनों के विरोध का नहीं है, बल्कि दिल्ली के घेराव का भी है। यह बात सरकार ने स्वीकार की है कि दिल्ली पुलिस ने ही रास्ते जाम किए हैं। जाहिर है, दिल्ली पुलिस की कोशिश है, राष्ट्रीय राजधानी में किसी तरह की अव्यवस्था की स्थिति न बने। संभव है, सुनवाई में यह बात भी सामने आएगी कि केंद्र सरकार ने किसानों को प्रदर्शन के लिए मैदान मुहैया तो कराया था, लेकिन किसान वहां जाने को तैयार नहीं हुए। दिल्ली को विरोध प्रदर्शन से बचाने के लिए किसानों को सीमा पर ही रोकने की मजबूरी पैदा हुई और सीमाओं पर समस्या बढ़ी। आश्चर्य नहीं, अदालत में शाहीन बाग मामले के फैसले का भी हवाला दिया गया, जिसमें कोर्ट ने कहा था कि सड़कें जाम नहीं की जानी चाहिए। अब स्थिति यह है कि खुद सरकार को ही मजबूरी में सड़कों को जाम करना पड़ा, ताकि किसानों को दिल्ली में घुसने से रोका जा सके। अदालत ने दोनों मामलों में तुलना के खिलाफ रुख दिखाया है, तो यह सही भी है। लोगों की निगाह अब सुप्रीम कोर्ट पर है। राजनीतिक रूप ले चुके इस मामले में अदालती फैसला आसान नहीं है। फिर भी, तमाम पक्षों को सुनने के बाद शीर्ष अदालत से एक सर्वमान्य व्यवस्था या फैसले की अपेक्षा देश करता है।

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