मुंबई :सीरियल किलर रामन राघव को पकड़ने वाले इंस्पेक्टर फियालोह नहीं रहे
मुंबई : दहशत सिर्फ वह नहीं होती कि धायं-धायं गोलियां चलें और आदमी अगले पल ढेर हो जाए। दहशत सिर्फ वह भी नहीं होती कि भीड़भरे इलाकों और लोगों से भरी ट्रेनों में बम रख दिए जाएं और फिर जोर के धमाकों से पूरी जिंदगी ही खामोश हो जाए। दहशत का कभी एक और भी नाम था- रामन राघव (रमन राघव नहीं)। इसी राघव पर अनुराग कश्यप ने चार साल पहले फिल्म बनाई थी, जिसमें नवाजुद्दीन सिद्दीकी ने राघव का किरदार निभाया था। यह फिल्म उस दौर में कान फिल्म फेस्टिवल में भी दिखाई गई थी। जिन एलेक्स फियालोह ने रामन राघव को पकड़ा था, उनकी शनिवार को मुंबई में मृत्यु हो गई। फियालोह 92 साल के थे।
रामन राघव कितना खतरनाक और खूंख्वार था, इसे मुंबई के पूर्व पुलिस कमिश्नर ई.एस मोडक की इस टिप्पणी से ही समझा जा सकता है, जिसमें उन्होंने कहा था कि राघव जैसी दहशत इससे पहले दुनिया में सिर्फ दो ही लोगों की रही- जैक द रिपर और बोस्टन स्ट्रेंग्लर की। जैक ने लंदन में अगस्त, 1881 में उस साल नवंबर तक सात महिलाओं को ढेर कर दिया था। पर वह न तो कभी पकड़ा गया और न ही पुलिस को उसकी कोई फोटो मिली। हां, उसकी इस दहशत से लंदन के मेट्रोपोलिटन पुलिस कमिश्नर सर चार्ल्स बारन की तब कुर्सी जरूर चली गई थी।
बोस्टन स्ट्रेंग्लर ने जुलाई, 1962 से जनवरी, 1964 तक 13 महिलाओं का कत्ल किया था। वह भी कभी पकड़ा नहीं गया, पर राघव गिरफ्तार हुआ और वह भी उन मोडक के कार्यकाल में, जिनके मुंबई पुलिस कमिश्नर रहते उसने सबसे ज्यादा कत्ल किए। अलग-अलग जांच एजेंसियों द्वारा की गई जांच और एक पुलिस सर्जन द्वारा उससे की गई पूछताछ के बाद जो तथ्य सामने आए, उसके मुताबिक, उसने कुल 41 लोगों के कत्ल किए थे, इसलिए जब वह तब के सब इंस्पेक्टर ऐलेक्स फियालोह के हाथों पकड़ा गया, तो मोडक इतने खुश हुए कि उन्होंने फियालोह को एक हजार रुपये का इनाम देने की घोषणा की थी। उस वक्त हजार रुपये की कीमत आज के एक लाख रुपये से भी ज्यादा थी। हालांकि बाद में चार्ल्स शोभराज भी बिकनी किलर के नाम से पूरी दुनिया में सुर्खियों में रहा, पर उसकी कहानी रामन राघव के बाद शुरू हुई।
राघव की गिरफ्तारी कैसे हुई, उस कहानी से पहले उसकी जिंदगी की कहानी को समझना बहुत जरूरी है। राघव का 1929 में तमिलनाडु के तिन्नेवेली जिले के अग्रेश्वर नेल्लुर गांव में जन्म हुआ था। पर क्या यह उसका मूल नाम था? जांच एजेंसियों को आखिर तक उस पर भ्रम बना रहा। उसने ज्यादातर लोगों को अपना नाम रामन राघव नहीं, सिंधी दलवई बताकर रखा था। उसने पांच साल की उम्र तक स्कूली पढ़ाई की और 13 साल की उम्र में वह मवाली बन गया। उसने 18 साल की उम्र में अपना गांव छोड़ दिया और 20 साल की उम्र में मुंबई चला आया। बीच-बीच में वह अपने गांव भी आता-जाता रहा। मुंबई में उसने अलग-अलग मिलों में काम किया। सन 1943 में उसने अपनी सगी बहन की बेटी गुरुअम्मा से शादी की, पर जब वह एक अपराध में कुछ दिनों के लिए मद्रास ( चैन्ने का पुराना नाम ) जेल गया, तो उसकी पत्नी से किसी और ने जबरन शादी कर ली। बाद में गुरुअम्मा ने अपने दूसरे पति को छोड़ दिया और राघव की रिहाई का इंतजार करने लगी। पर राघव जब जेल से बाहर आया, तो वह गुरुअम्मा के साथ बहुत ज्यादा नहीं रह पाया। गुरुअम्मा की बच्चे के जन्म के दौरान मौत हो गई।