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मुंबई : कांग्रेस संगठन में बड़े पैमाने पर फेरबदल के बाद मुंबई कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए नए सिरे से लॉबिंग तेज है। सूत्रों के मुताबिक मुंबई कांग्रेस में बदलाव तो बहुत पहले होने वाले थे, लेकिन महाराष्ट्र के तत्कालीन प्रभारी मल्लिकार्जुन खड़गे के कारण ऐसा नहीं हो पाया। इसकी दो वजह बताई जा रही है। पहली यह कि खरगे खुद को मुंबई कांग्रेस के अंदरूनी झगड़ों से बचाने के लिए कोई भी ठोस फैसला लेने से बचते रहे। दूसरी वजह यह थी कि यथास्थिति बनाए रख कर ही खरगे अपने चहेते एकनाथ गायकवाड को अध्यक्ष पद पर बनाए रख सकते थे।

मुंबई कांग्रेस के नेताओं ने कई तरह से आलाकमान तक यह बातें पहुंचाई थी। कांग्रेस आलाकमान भी महाराष्ट्र प्रभारी पद से मलिकार्जुन खरगे को हटाने का मन काफी पहले ही बना चुका था। अब जब खरगे की जगह एच.के.पाटील को नया प्रभारी बनाया गया है, तो उनके मार्फत अब महाराष्ट्र में संगठन में बदलाव का रास्ता साफ हो गया है। दिल्ली के कांग्रेसी सूत्रों का कहना है कि खुद राहुल गांधी ने महाराष्ट्र के लिए एच. के. पाटील का चुनाव किया है और उन्हें महाराष्ट्र कांग्रेस से पहले मुंबई कांग्रेस पर ध्यान देने को कहा है। इसकी एक वजह यह भी है कि 2022 में मुंबई महानगर पालिका के चुनाव होने हैं। नए प्रभारी के तौर पर यह चुनाव एचके पाटील के नेतृत्व की भी परीक्षा होंगे।

मुंबई कांग्रेस के नेता पिछले छह-आठ महीने से लगातार यह फीडबैक दिल्ली भेज रहे हैं कि शिवसेना और राकांपा मिलकर बीएमसी चुनाव लड़ सकते हैं। बीजेपी के साथ आरपीआई होगी। ऐसे में कांग्रेस को भी तत्काल रणनीति निर्धारित करने और एक निश्चित दिशा में आगे बढ़ने की योजना बनानी होगी।पार्टी सूत्रों की मानें तो मुंबई में तत्काल नेतृत्व परिवर्तन की जरूरत है, जो तेजी से काम शुरू कर सके और रणनीतिक फैसलों पर आगे बढ़ सके। जिसके पास काम करनेवाले कार्यकर्ताओं और पदाधिकारियों की टीम हो। जिसे बीएमसी का गणित मालूम हो।

पिछले दिनों मुंबई में मुंबई कांग्रेस अध्यक्ष के लिए कई नाम चर्चा में आए हैं। इनमें डॉ. अमरजीत सिंह मनहास, भाई जगताप, मधु चव्हाण, पूर्व मंत्री नसीम खान और सुरेश शेट्टी के नाम चर्चा में रहे हैं।एक समय मुंबई के कॉस्मोपॉलिटिन चेहरे के रूप में डॉ. मनहास का नाम सबसे आगे था, लेकिन मध्यप्रदेश का राजनीतिक संकट, फिर सोनिया गांधी की खराब सेहत, तो कभी राजस्थान का संकट और कभी कांग्रेस के बड़े नेताओं की चिट्ठबाजी के चलते मुंबई और महाराष्ट्र कांग्रेस में परिवर्तन का मुद्दा पिछड़ता गया।

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