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मुंबई : कोरोना संकट और लॉकडाउन के दौरान लाखों मजदूरों का रोजगार छिन गया था। इसके बाद वे अपने गांव लौट गए थे। हमेशा सड़कों पर नज़र आने वाले सड़क के सिपाही रिक्शा चालकों को भी गांव जाना पड़ गया था। थोड़ी राहत मिलते ही वसई- विरार के ऑटो वाले अब फिर अपनी कर्मभूमि की ओर लौटने लगे हैं। जानकारी के अनुसार वसई-विरार में लॉकडाउन शुरू होते ही ऑटो रिक्शा पूरी तरह बंद हो गए थे। इससे वे अपने घर का किराया तक नहीं भर पा रहे थे और उन्हें गांव जाना पड़ा था। 

वसई-विरार में लगभग 40 हजार ऑटो चलते हैं। इनमें अधिकतर उत्तर भारतीय हैं। इनमें से लगभग 10 हजार ऑटो चालकों अपने गांव लौट गए थे। लगभग तीन महीने गांव में रहने के बाद अब धीरे-धीरे ऑटो चालक अपनी कर्मभूमि की ओर लौटने लगे हैं। दो दिन पहले ही भदोही जिले से 25 ऑटो रिक्शा नालासोपारा आए हैं। उन्होंने बताया कि लॉकडाउन के दौरान ट्रेनें बंद हो गई थीं। इसलिए बिना ई-पास के ही वे अपने ऑटो लेकर यूपी के लिए चल पड़े। हालांकि मई में सरकार ने प्रवासी मजदूरों के लिए श्रमिक ट्रेनें चलाई थीं। लेकिन तब तक वसई विरार के 10 हजार ऑटो चालक अपने मूल गांव पहुंच गए थे।

नालासोपारा पूर्व गालानगर में रहने वाले रिक्शा चालक सुनील यादव ने बताया कि 25 मार्च से लॉकडाउन शुरू हुआ। उसके बाद वसई विरार में ऑटो चलना बंद हो गया। परिवार का खर्च चलाना मुश्किल हो गया था। इसलिए हम 25 ऑटो वाले अपने परिवार लेकर नालासोपारा से गांव के लिए निकल पड़े थे। उस वक्त यूपी जाने के लिए भारी भीड़ थी। लोग पैदल, साइकिल, बाइक व प्राइवेट वाहनों से जा रहे थे। रास्ते मे ट्रैफिक जाम से बहुत परेशानी हुई। चार दिन के मुश्किल भरे सफर के बाद भदोही जिला स्थित अपने गांव पहुंचे। पंचू यादव ने बताया कि लॉकडाउन से मुंबई से यूपी और यूपी से मुंबई आने में जो तकलीफ हुई है, उसे जिंदगी भर नहीं भूल सकता हूं। उत्तरप्रदेश से रिक्शा से सफर कर वापस लौटे संतु यादव ने बताया कि चार महीने गांव में रहने के बाद मायानगरी वापस लौटे हैं। बस अब अपने पुराने दिनों को याद कर रहे हैं कि जल्द जनजीवज सामान्य हो जाए। 

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