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देश के दस राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ अपनी कल की बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अधिक से अधिक जांच की बात पर जिस तरह से जोर दिया, वह महामारी से निपटने में इस कदम की अहमियत को स्पष्ट कर देता है। उन्होंने उन राज्यों से खास तौर से अपील की कि वे अपने यहां जांच की रफ्तार और दायरा बढ़ाएं, जहां संक्रमण-दर और मृत्यु-दर अधिक हैं। बैठक के बाद प्रधानमंत्री ने ट्वीट करके बाकायदा बिहार, गुजरात, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल और तेलंगाना सरकारों से इस काम में तेजी लाने को कहा। इसमें कोई दोराय नहीं कि जांच की संख्या और दायरे के विस्तार के साथ संक्रमण के आंकडे़ बढ़ेंगे, लेकिन संक्रमितों को वक्त पर उपचार मुहैया कराकर ही मृत्यु-दर को कम किया जा सकता है। अब यह वैश्विक स्तर पर स्थापित तथ्य है कि जिन देशों ने बचाव के अन्य उपायों के साथ शुरुआती दौर में ही ज्यादा से ज्यादा जांच का रास्ता अपनाया, वे आज बेहतर स्थिति में हैं।
हमारे लिए राहत की एक बात यह है कि मृत्यु-दर दो फीसदी के नीचे आ गई है। जाहिर है, रिकवरी रेट बढ़ रहा है। लेकिन महामारी से हमारी लड़ाई अभी काफी कठिन मोड़ पर है। चूंकि संक्रमण के मामले अब ग्रामीण इलाकों से भी काफी मिल रहे हैं, इसलिए हमें पहले से अधिक चिकित्सकों, अस्पतालों और अन्य संसाधनों की जरूरत पड़ेगी, जबकि हम अब तक इस जंग में तकरीबन 200 डॉक्टरों की शहादत दे चुके हैं और पहली कतार के कोरोना वॉरियर्स व अस्पतालों पर भी दबाव बढ़ता जा रहा है। यही नहीं, लंबे लॉकडाउन और आर्थिक सुस्ती के कारण आम लोगों पर भी एक अलग किस्म का दबाव है। खुद प्रधानमंत्री ने कल की बैठक में इसका संकेत किया था। ऐसे में, एक राष्ट्र के तौर पर यह हमारे धैर्य की परीक्षा की घड़ी है। और महामारी को परास्त करने के लिए हमें इस परीक्षा में पास होना ही होगा।
कल की बैठक में कुछ मुख्यमंत्रियों ने राज्य आपदा राहत कोष (एसडीआरएफ) से कैप हटाने की भी मांग की, ताकि वे अपने सूबे में महामारी की चुनौतियों का मुकाबला अच्छे तरीके से कर सकें। अभी इस कोष से अधिकतम खर्च-सीमा 35 फीसदी है। पंजाब, तमिलनाडु और केरल जैसे राज्यों ने केंद्र से इससे अधिक राशि निकालने की इजाजत मांगी है। राज्यों की यह मांग जायज लगती है, क्योंकि पिछले छह महीनों से उनकी राजस्व-उगाही बुरी तरह प्रभावित हुई है, और फिर बिहार व केरल जैसे राज्य तो बाढ़ की आपदा का भी सामना कर रहे हैं। स्वाभाविक है, उन्हें इस कैप की वजह से दुश्वारियां पेश आ रही हैं। बहरहाल, केंद्र और राज्यों ने जिस समन्वय के साथ अब तक इस महामारी का मुकाबला किया है, उसकी यकीनन सराहना की जानी चाहिए। तब तो और, जब अमेरिका जैसा मजबूत संघीय ढांचा इस महामारी में चरमराता हुआ दिखा और राष्ट्रपति ट्रंप व विपक्ष शासित राज्यों की तनातनी की कीमत हजारों अमेरिकियों को जान देकर चुकानी पड़ी। भारत में राज्यों के मुख्यमंत्री के साथ प्रधानमंत्री शुरुआत से ही लगातार बैठकें करते रहे हैं और इससे समस्याओं के मूल तक पहुंचने की एक समझ बनी है। यह एक मुश्किल लड़ाई है और विभिन्न शासकीय इकाइयों के बीच बेहतर तालमेल, अधिकतम जांच एवं व्यापक जन-जागरूकता से ही इसमें फतह मिल सकती है।

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