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मुंबई : चाइनीज उत्पादों के अपने बहिष्कार अभियान को तेज करते हुए व्यापारिक महासंघ ने बालीवुड और क्रिकेट सितारों से अपील की है कि वे देशहित में चाइनीज कंपनियों और चाइना से आयात कर अपने ब्रांड नाम से बेचने वाली भारतीय कंपनियों के उत्पादों का प्रचार ना करें. उन कंपनियों से किए गए अपने विज्ञापन अनुबंध तुरंत रद्द करें. 

इसके अलावा चाइना द्वारा भारतीय सैनिकों पर हमले से आक्रोशित व्यापारियों ने केंद्र और सभी सरकारों से चाइनीज कम्पनियों को दिए गए सभी टेंडर वापिस लेने का आग्रह भी किया है. कॉन्फेडरेशन ऑफ़ आल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) ने सरकार से भारतीय स्टार्टअप में चाइना की कंपनियों द्वारा निवेश को वापस करने के नियम बनाने जैसे कुछ तत्काल कदम उठाने का भी आग्रह किया है, ताकि भारतीय सैनिकों के खिलाफ चीन के अनैतिक और बर्बरतापूर्ण व्यवहार के लिए कड़ा जवाब दिया जा सके.

कैट’ के राष्ट्रीय महामंत्री प्रवीन खंडेलवाल ने कहा कि हाल के घटनाक्रमों और भारत के प्रति चीन के लगातार रवैये के मद्देनजर, भारतीय व्यापारियों ने संकल्प लिया है आयात को कम करके चाइना को एक बड़ा सबक सिखाएं और हम दिसम्बर तक निर्धारित एक लाख करोड़ आयात कम करने के लक्ष्य को हासिल करने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे. भले ही व्यापारियों का व्यापार चाइना से आयात हो रहा है, लेकिन फिर भी उनके लिए राष्ट्रीय हित से पहले कुछ नहीं होगा और उन्होंने आंदोलन के साथ एकजुटता से खड़े होने का फैसला किया है.

कैट’ के मुंबई अध्यक्ष शंकर ठक्कर ने कहा कि भारतीय फ़िल्मी सितारों और क्रिकेटरों द्वारा चाइनीज ब्रांडों के बड़े पैमाने पर प्रचार करना गंभीर चिंता का विषय है. हम फ़िल्मी सितारों दीपिका पादुकोण , आमिर खान, विराट कोहली, रणवीर सिंह , सारा अली खान , रणवीर कपूर , विकी कौशल, जो विभिन्न चाइनीज मोबाइल उत्पादों की ब्रांडिंग करते हैं, से अपील करते हैं कि वे देश हित और भारतीय सैनिकों का मनोबल बढ़ाने के लिए चाइनीज ब्रांडों की ब्रांडिंग करना बंद करें और राष्ट्र की भावनाओं का सम्मान करें.

संगठन ने सरकार से चाइना पर एक मजबूत स्थिति बनाने का आग्रह किया है और चाइना की कंपनियों को दिए गए सभी सरकारी अनुबंधों को तुरंत रद्द कर दिया जाए. पिछले कुछ महीनों से चीन की कंपनियां विभिन्न सरकारी अनुबंधों में बहुत कम दरों पर बोली लगा रही हैं और इस तरह से वे कई सरकारी परियोजना निविदाओं को प्राप्त करने में सफल हुई हैं. सरकार को लागत में मामूली अंतर होने के बावजूद भारतीय कंपनियों को यह अनुबंध देने चाहिए.


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