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मुंबई, देश की आर्थिक राजधानी कही जानेवाली मुंबई में गुजर-बसर करना इतना आसान नहीं है। महंगाई, काम-काज का प्रेशर, पारिवारिक कलह, रिश्तों में तल्खियां जैसी कई परेशानियों से लोग रोज जूझते हैं। ये परेशानियां आगे चलकर मनोरोग का कारण बनती हैं। ये परेशानियां मुंबईया भाषा में कहे तो दिमाग का दही करती हैं। स्वास्थ्य विभाग से मिले आंकड़ों की मानें तो एक वर्ष में शहर में दिमागी बीमारी से जूझ रहे लोगों की संख्या में २४ फीसदी का इजाफा हुआ है।
बता दें कि स्वास्थ्य विभाग के तहत कार्यरत हेल्थ मैनेजमेंट इंफॉर्मेशन सिस्टम (एचएमआईएस) से मिले आंकड़ों के मुताबिक वर्ष २०१७ में मानसिक बीमारी से जूझ रहे ८८,६७२ लोग मनपा व सरकारी अस्पताल के ओपीडी में इलाज के लिए आए थे जबकि वर्ष २०१८ में मरीजों की संख्या बढ़कर १,१०,२५७ तक पहुंच गई। २०१९ सितंबर तक ७०,००० मरीजों ने इलाज के लिए अस्पताल का रुख किया है। डॉक्टरों की मानें तो मरीजों की बढ़ती संख्या अच्छे संकेत हैं क्योंकि पहले लोगों को यह पता ही नहीं चलता था कि वे अवसाद, तनाव व अन्य मानसिक रोग से ग्रसित हैं। नानावटी सुपर स्पेशिएलिटी अस्पताल के कंसलटेंट मनोचिकित्सक डॉ. अजीत दांडेकर ने कहा कि यह बहुत अच्छी बात है कि लोग मानसिक बीमारी की पहचान कर इलाज के लिए अस्पताल पहुंच रहे हैं। लोगों को जागरूक करने में मीडिया और सरकार अहम भूमिका निभा रही है। मनोरोग चिकित्सक डॉ. सागर मूंदड़ा ने कहा कि लोग मानसिक बीमारी के प्रति जागरूक हो रहे हैं, अच्छी बात है लेकिन यह रोग हो न इसके लिए मुंबईकरों को अपनी जीवनशैली में सुधार करने की जरूरत है। मोबाइल, कंप्यूटर पर अधिक समय बिताने की बजाय परिवार और दोस्तों के साथ समय बिताना चाहिए। खान-पान पर ध्यान, नियमित कसरत और अच्छी नींद लेनी चाहिए।



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