मिलिए " चंद्रयान -1 " की ख़ुशबू मिर्ज़ा से जो मुस्लिम महिलाओं के लिए एक प्रेरणा है
आज जब हमारे मुल्क हिन्दुस्तान ने "चंद्रयान 2" का,सफल प्रक्षेपण कर लिया है, जिस के लिए हमारे मुल्क के साइंटिस्ट्स मुबारकबाद के मुस्तहिक़ है,इस से पहले चंद्रयान 1की सफलता का हिस्सा बनी " ख़ुशबू मिर्ज़ा "की बात आप तक पहुंचा रहे हैं, आप की ज़िम्मेदारी है के इसे और ज़्यादा दुसरों तक पहुंचाए।
बात 2008 की है जब भारत ने सफ़ल पुर्वक चंद्रयान-1 का टेस्ट किया था तब पुरा भारत ख़ुशी के मारे झुम उठा था , ठीक उस समय UP के अमरोहा का एक छोटा सा मुस्लिम बहुल मोहल्ला "चौगौरी" कुछ अधिक ख़ुशी मना रहा था और मनाए भी क्यो नही आख़िर वहां की बेटी "ख़ुशबु मिर्ज़ा" भारत के चंद्रयान मिशन की हिस्सा जो थी :)
अलीगढ़ मुस्लिम युनिवर्सिटी से B.Tech की पढ़ाई की हुई ख़ुशबु मिर्ज़ा उन इनजिनयर के टीम मे थी जिन्होने चंद्रयान-1 को आसमान मे भेजा था :)
अमरोहा की खुशबू मिर्ज़ा ने इसरो के चंद्रयान मिशन का हिस्सा बनकर छोटे शहर और मुस्लिम महिलाओं से जुड़ी तमाम नकारात्मक छवियों को तोड़ा है. उत्तर प्रदेश का अमरोहा जिला दिल्ली से करीब 200 किमी की दूरी पर है. यहां का चौगोरी मौहल्ला एक आम-सी मुस्लिम आबादी है जिसमें शायद ही कुछ ऐसा हो जो आपका जरा भी ध्यान आकर्षित कर पाए. इस मौहल्ले में प्रवेश का एकमात्र रास्ता मात्र छह फुट चौड़ा और घुमावदार है जो अक्सर कीचड़ और गंदगी से भरा रहता है और इसी रास्ते से होकर ही मिर्जा परिवार तक पहुंचा जा सकता है. खुशबू इसी मिर्ज़ा परिवार की तीन संतानों में से एक हैं जिनसे आज यहां हर कोई मिलना चाहता है.
मुहल्ला चौगौरी निवासी स्व. सिकंदर मिर्ज़ा के परिवार में 30 जुलाई 1985 को जन्म लेने वाली खुशबू मिर्ज़ा ने शहर के ही कृष्णा बाल मंदिर स्कूल से इंटर तक की पढ़ाई पूरी की। उसके बाद अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से इलेक्ट्रिक इंजीनियरिंग में बीटेक किया। वह अपने बैच की गोल्ड मेडलिस्ट रहीं।
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) में इंजीनियर "ख़ुशबु मिर्ज़ा" भारत की महत्वाकांक्षी चंद्रयान परियोजना की ‘चेक आउट’ डिवीजन के 12 सदस्यों में से एक थीं, खास बात ये है कि वे इस टीम की सबसे छोटी सदस्य थीं. इस डिवीजन में उनका काम था कृत्रिम परिस्थितियों में उपग्रह के तमाम पुर्जो पर तरह-तरह के परीक्षण करना.
"खुशबू मिर्ज़ा" बताती हैं कि एक साल और दस महीने तक उन्होंने इस मिशन को पूरा करने के लिए जी-तोड़ मेहनत की है. ‘इसरो में काम करते हुए भी मैंने रमजान के रोज़े रखे, नमाज़ पढ़ी और परीक्षण केंद्र में ही ईद भी मनाई’ खुशबू कहती हैं. इस बात से शायद ये भी साबित होता है कि इस्लाम की रवायतों का पालन करने के मामले में वो किसी अन्य आम मुस्लिम महिला से ज़रा भी अलग नहीं. हालांकि वो ये भी स्वीकार करती हैं कि उनकी उदार पारिवारिक पृष्ठभूमि का उनकी सफलता में खासा योगदान है.
जब चंद्रयान को अंतरिक्ष में भेजा गया तब उत्तर प्रदेश के अमरोहा जिले के चौगोरी मोहल्ले में मिठाई बांटी गई। लोगों में खुशी थी कि हमारा देश विज्ञान की नई मंजिलों को सर कर रहा है। लेकिन उस से भी बड़ी खुशी यह थी की उनके ही गांव की एक बेटी खुशबू मिर्ज़ा चंद्रयान की तकनीकी एवं इंजिनियरिंग टीम की एक महत्वपूर्ण सदस्य थी। खुशबू की उपलब्धि से पूरे अमरोहा का सर गर्व से ऊंचा हो गया..!
खुशबू की दुनिया सिर्फ़ इंजीनियरिंग तक ही सीमित नहीं रही. अपने स्कूल के दिनों में वो जिला स्तर की वॉलीबॉल की खिलाड़ी थीं. दसवीं पास करने के बाद आगे पढ़ाई के लिए उन्होंने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया और फिर यहीं से बी टेक की पढ़ाई भी की.
खुशबू इस विश्वविद्यालय की पहली छात्रा भी रहीं जिसने यहां के छात्र संघ के चुनावों में हिस्सा लिया. हालांकि वे चुनाव तो नहीं जीतीं लेकिन उनकी इस कोशिश ने यहां और लड़कियों को चुनाव में भाग लेने के लिए प्रेरित किया. समय बदल चुका है इसलिए मुस्लिम लड़कियों के प्रति भी नज़रिया बदलना चाहिए. हमारे परिवारों को हमें ज़रूर पढ़ाना चाहिए