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मुंबई : अरब सागर के सात छोटे द्वीप से बने शहर मुंबई की देश में एक अलग पहचान है। देश का प्रमुख आर्थिक केंद्र होने के साथ ही मुंबई के फ्लाइओवरों ने शहर की नई तस्वीर पेश की है। इन फ्लाइओवरों का ऐसा जाल शायद ही किसी दूसरे शहर में देखने को मिले। मुंबई देश का इकलौता शहर है, जहां 100 से अधिक छोटे-बड़े फ्लाइओवर हैं। हाइवे की चौड़ी सड़कों से लेकर रहिवासी इलाके और बाजारों के करीब कई फ्लाइओवर का निर्माण हुआ है। नतीजतन, दिन हो या रात रोजाना लाखों गाड़ियां तेज रफ्तार से दौड़ती रहती हैं। शहर के हर कोने में सड़कों का जाल जाने से घंटों का सफर मिनटों में मुमकिन हो रहा है। फ्लाइओवरों के इतिहास की बात करें तो 1965 में देश के पहले फ्लाइओवर का निर्माण यहीं किया गया था। पैडर रोड के केम्स कॉर्नर में भारतीय इंजीनियर शिरीष पटेल ने केम्स कॉर्नर फ्लाइओवर का निर्माण किया था। 1964 में इस फ्लाइओवर का निर्माण कार्य शुरू किया गया था। इसे बनाने में करीब सात माह का वक्त लगा था। 1965 में ब्रिज को वाहनों की आवाजाही के लिए शुरू कर दिया गया था। उस वक्त इस पुल के निर्माण पर 17.5 लाख रुपये खर्च किए गए थे, जो 2018 में 8.7 करोड़ रुपये के बराबर थे। इस ब्रिज के निर्माण के कुछ समय बाद ही गिरगांव चौपाटी के करीब दूसरा फ्लाइओवर का निर्माण किया गया। सागर किनारे बने प्रिंसेस स्ट्रीट मरीन ड्राइव फ्लाइओवर अपने निर्माण के समय से सैलानियों का आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। पिछले 50 सालों में हजारों फिल्मों में यह ब्रिज नजर आया है।
शहर की परिवहन व्यवस्था की रफ्तार बढ़ाने के लिए सरकार ने भीड़भाड़ और संकरी सड़कों के परिसर में जेजे फ्लाइओवर का निर्माण किया है। 2.4 किमी लंबा यह ब्रिज मोहम्मद अली रोड, भिंडी बाजार जैसे भीड़भाड़ वाले इलाके से गुजरता है। 2002 में बनकर तैयार हुआ यह ब्रिज सैकडों इमारतों के करीब से हो कर गुजरता है। ट्रैफिक एक्सपर्ट अशोक दातार के मुताबिक, जेजे फ्लाइओवर का निर्माण प्रशासन के लिए काफी चुनौतीपूर्ण था, यह ब्रिज 22 से अधिक छोटे-बडे जंक्शन के ऊपर से गुजरता है। साथ ही मार्ग में 20 से अधिक कर्व है। इसके बन जाने से साउथ मुंबई से मध्य मुंबई पहुंचा बेहद ही आसान हो गया है। 30 मिनट का सफर केवल 5 से 7 मिनट में पूरा हो रहा है।
कुछ वर्ष पहले तक शहर की पहचान गेट वे ऑफ इंडिया और सीएसएमटी स्टेशन हुआ करता थे। 2010 से मुंबई की पहचान की लिस्ट में बांद्रा-वर्ली सी लिंक का भी नाम जुड़ गया। यहां आने वाला हर सैलानी सागर पर बने 5.6 किमी लंबा सी लिंक को जरूर देखता है। एक तरह से कहा जाए, तो जिस तरह से हावड़ा की पहचान हावड़ा ब्रिज है, उसी तरह अब मुंबई की पहचान सी लिंक बन गया है। 5.6 किमी लंबा सी लिंक का निर्माण 2010 में किया गया था। इस ब्रिज से रोजाना हजारों वाहन गुजरते हैं। साथ ही मुंबई में बांद्रा से वर्सोवा के बीच दूसरे सी लिंक का भी निर्माण कार्य चल रहा है।
लगातार बढ़ती गाड़ियों की संख्या को देखते हुए करीब 16.8 किमी का एलिवेटेड रोड बनाया गया है। सड़क के ऊपर एलिवेटेड रोड के बन जाने से वाहन चालकों का सफर आसान हो गया है। घंटों का सफर अब मिनटों में होने लगा है। इसके बन जाने से वाहन साउथ मुंबई से सीधे ईस्टर्न एक्सप्रेस हाइवे पर पहुंच रहे हैं। मुंबई के मध्य से वेस्टर्न और ईस्टर्न एक्सप्रेस हाइवे होकर गुजरता है। गाड़ियों की रफ्तार बनाए रखने के लिए हाइवे पर 25 से अधिक फ्लाइओवर का निर्माण किया गया है। वेस्टर्न एक्सप्रेस हाइवे पर करीब 14 और ईस्टर्न एक्सप्रेस हाइवे पर 11 ब्रिज का निर्माण किया गया है।

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