राज्य के प्रत्येक जिले में बनेगा पुस्तक गांव – मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे
मुंबई, मराठी भाषा का अधिक से अधिक उपयोग किया जाना चाहिए। मराठी भाषा के प्रसार के लिए पुस्तकों का गांव नामक उपक्रम शुरू किया गया है। राज्य में केवल एक ही पुस्तक का गांव क्यों होना चाहिए? मराठी भाषा को उसकी विशेषता के साथ सभी तक पहुंचाने का प्रयास किया जाएगा। मराठी भाषा के विकास के लिए प्रयास किए जाएंगे। इसके लिए राज्य के प्रत्येक जिले में कम से कम एक पुस्तक गांव होना चाहिए। इसलिए अगले मराठी भाषा गौरव दिवस से पहले राज्य के हर जिले में पुस्तकों का एक गांव होगा। यह घोषणा मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने कल मराठी भाषा गौरव दिवस के अवसर पर की।
मुख्यमंत्री के हाथों मराठी भाषा के प्रचार प्रसार के लिए उल्लेखनीय योगदान देनेवाले साहित्यकारों को सम्मानित किया गया। मुख्यमंत्री ने कहा कि आज हम जिन लोगों को यहां सम्मानित कर रहे हैं। यह उनका सम्मान नहीं बल्कि यह एक छोटे से ऋण को व्यक्त करने का क्षण है। साहित्यकार महाराष्ट्र की भाषा का संरक्षक हैं। अक्षर धन और मराठी संस्कृति के भाषा संरक्षक हैं। पुरस्कार तो एक बहाना है। मुझे इस ऋण को व्यक्त करने के लिए अपने कर्तव्य को पूरा करने पर बहुत गर्व है।
मराठी भाषा गौरव दिवस के विभिन्न कार्यक्रम हो रहे हैं। इसमें हम मराठी भाषा को सरल बनाने के विचार का प्रस्ताव दे रहे हैं। नई तकनीक विकसित हो रही है। हर दिन नई चीजें आ रही हैं। इस प्रतिस्पर्धात्मक युग में मराठी भाषा और संस्कृति को जीवित रखना और विकसित करना महत्वपूर्ण है इसलिए एक सरकार के रूप में हम मराठी भाषा के प्रचार और विकास के लिए प्रयास कर रहे हैं। इस तरह के प्रयासों और मराठी भाषा के गौरव दिवस को आनेवाली कई पीढ़ियों द्वारा मनाया जाना चाहिए और इसमें बाधा नहीं पड़ने नहीं दो जाएगी। मुख्यमंत्री ने कहा कि अंग्रेजी के प्रत्यक्ष शाब्दिक अनुवाद के कारण बहुत भ्रम हो गया है। सार्थक और सरल शब्दों के साथ आने का प्रयास किया जाना चाहिए। मुझे विश्वास है कि आप सभी इसका समर्थन करेंगे।
मुख्यमंत्री ने कहा कि साहित्यकार सिर्फ लेखन नहीं करते बल्कि जीवन की गाड़ी को ट्रैक पर लाते हैं। शिवसेनाप्रमुख कहा करते थे, एक–एक अक्षर से शब्द बनते हैं। भाषा से संस्कार विकसित होते हैं। भाषा को संरक्षित करने का मतलब है संस्कृति को संरक्षित करना। जब कोई नेता उत्तर से यहां आता है, तो वह हिंदी में ही बात करता है लेकिन अगर हम वहां जाते हैं, तो वह हमसे मराठी में बात नहीं करते। विदेशों में कई जगहों पर अंग्रेजी नहीं बोली जाती है। यहां तक कि कई देशों के राष्ट्रपति अंग्रेजी नहीं बोलते हैं। वे अपने देश की भाषा बोलते हैं इसलिए हमें विचार करना होगा कि क्या हम अपनी भाषा को कम आंकते हैं।