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ठाणे : कोरोना महामारी के बीच डॉक्टरों और अस्पतालों में खौफ का माहौल बना है। इससे आम लोगों की परेशानी बढ़ गई है। दूसरी बीमारी से पीड़ित मरीजों और गर्भवती महिलाओं को इलाज के लिए दर-दर भटकना पड़ रहा है। महाराष्ट्र के अस्पताल में भर्ती करने से पहले मरीजों का कोरोना टेस्ट करना अनिवार्य सा हो गया है। कोई अस्पताल या डॉक्टर बाद में खतरा मोल नहीं लेना चाहता है।

ठाणे शहर के मुंब्रा परिसर में एक गर्भवती महिला को इस कदर परेशान होना पड़ा कि रात के अंधेरे में सड़क पर ही प्रसूति हो गई। मिली जानकारी के अनुसार मुंब्रा निवासी इसरार अहमद की पत्नी गर्भवती थी। महिला का रूटीन चेकअप स्थानीय निजी अस्पताल में शुरू था। पांच-छह दिन पहले अस्पताल के डॉक्टर ने इसरार से उसकी पत्नी का कोरोना टेस्ट कराने के लिए कहा था। इसरार के मुताबिक, उसकी आर्थिक हालत अच्छी नहीं है और कोरोना टेस्ट काफी खर्चीला है, इसलिए उसने टेस्ट नहीं कराया था। इसके अलावा उसके सामने डिलिवरी का भी खर्च था। इस बीच अस्पताल ने उसकी पत्नी का चेकअप करने से मना कर दिया था। 

शनिवार की रात करीब साढ़े 11 बजे महिला को प्रसव पीड़ा शुरू हुई। रात में कोई ऑटो नहीं मिला, तो इसरार पत्नी को पैदल लेकर कलवा के मनपा संचालित शिवाजी अस्पताल में जाने के लिए निकल पड़ा। कुछ दूर जाने पर दर्द और बढ़ गया और महिला सड़क पर बैठ गई। उसी दौरान उसकी डिलिवरी हो गई। देर रात साढ़े 12 बजे सड़क पर पड़ी महिला को कुछ स्थानीय लोगों ने देखा और करीब स्थित निजी अस्पताल के डॉक्टर इमरान को बुलाया। डॉक्टर इमरान ने देखा कि महिला की हालत गंभीर है। गर्भ नाल मां के पेट के भीतर फंसी थी तथा बच्चा आधा बाहर था। 

डॉक्टर के मुताबिक महिला को सड़क पर से हिलाना उसकी जान के लिए खतरा था, रक्तस्राव ज्यादा हो रहा था। उन्होंने करीब में रहने वाली नर्स हाजरा अंसारी को बुलाया और उसकी मदद से नवजात को बाहर निकाला। फिलहाल, जच्चा और बच्चा दोनों सुरक्षित हैं। डॉ. इमरान के अनुसार संभावित खतरे को देखते हुए अस्पताल कोरोना टेस्ट करने के लिए कहते हैं। सरकार को चाहिए कि कोरोना टेस्ट को अस्पताल में मुफ्त कराने की दिशा में पहल करे, जिससे आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को परेशान न होना पड़े। 


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