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मुंबई : सार्वजनिक स्वास्थ्य विभाग द्वारा संक्रामक बीमारियों के नियंत्रण के लिए विविध तरह के कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं. इन कार्यक्रमों पर सरकार जमकर निधि भी खर्च करती है, लेकिन नियंत्रण अब भी मुश्किल है. हर वर्ष डेंगू, स्वाइन फ्लू, मलेरिया जैसी बीमारी से अनेक लोगों की मौत हो जाती है. अकेले डेंगू से राज्य में पिछले 4 वर्षों के भीतर 180 लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी. दरअसल यह वह आंकड़ा तो पंजीकृत हुआ है, जबकि कई मौतें रजिस्टर्ड भी नहीं होतीं.

सरकार द्वारा संक्रामक बीमारियों को नोटिफाइड बीमारियों में शामिल किया है. इसके बाद भी अनेक निजी अस्पतालों द्वारा समय पर रिपोर्ट नहीं दी जाती. महानगरपालिका क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवा मेडिकल कालेजों के साथ ही निजी अस्पतालों पर भी निर्भर है, जबकि यह जिम्मेदारी महानगरपालिकाओं की होती है. महंगा खर्च वहन नहीं कर पाने की वजह से भी कई लोग काल के गाल में समा जाते हैं.

आरटीआई एक्टिविस्ट अभय कोलारकर द्वारा सूचना के अधिकार के तहत मांगी गई जानकारी बीमारियों का खुलासा हुआ है. वर्ष 2016 में राज्यभर में मलेरिया के 23,983 मरीज पाए गए. इनमें से 26 की मौत हो गई. इसी तरह 2017 में 17710 मरीजों में से 20 की मौत हुई, जबकि 2018 में 10757 मरीजों से 13 और अक्टूबर 2019 तक 7178 मरीजों में 5 की मौत हो गई. इस तरह 4 वर्षों में कुल 173 मरीजों की मौत हुई. इन 4 वर्षों में क्रमश: डेंगू के 6792, 7829, 11038, 9899 मरीज पाए गए. जबकि 180 मरीजों की मौत हो गई. इसी तरह चिकनगुनिया के कुल 6499 मरीज पाए गए. जबकि मौत किसी भी मरीज की नहीं हुई. फायलेरिया के कुल 737 मरीज मिले.

राज्य के हिस्सों की तुलना में डेंगू, स्वाइन फ्लू से सबसे ज्यादा प्रभावित पूर्व विदर्भ रहा है. हर वर्ष डेंगू और स्वाइन फ्लू से मरने वालों का आंकड़ा बढ़ता ही जा रहा है. यही वजह है कि स्वास्थ्य विभाग के नियंत्रण कार्यक्रम को लेकर भी सवाल उठाए जाते रहे हैं. केवल विदर्भ ही नहीं, बल्कि राज्य के अन्य ग्रामीण हिस्सों में स्वास्थ्य सेवा का अभाव है. डाक्टरों की कमी और दवाइयों का टोटा होने की वजह से ही अधिकांश मरीजों को सही समय पर योग्य उपचार नहीं मिल पाता. जिस वजह से बीमारी तेजी से फैलती और अपनी जान गंवाना पड़ता है.


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