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मुंबई : बॉम्बे हाई कोर्ट ने मंगलवार को केंद्रीय गृह मंत्रालय के तीन ऐसे आदेशों को रद्द कर दिया है जिनमें सीबीआई की जांच के लिए एक बिजनसमैन के फोन कॉल को टैप करने के लिए कहा गया था। रिश्वतखोरी के एक मामले को लेकर दिए गए इस आदेश को निजता के अधिकार का हनन बताते हुए रद्द कर दिया गया है। कोर्ट ने अवैध तरीके से टैप की गई बातचीत को नष्ट करने का निर्देश दिया है। हाई कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट को कोट करते हुए कहा है कि टैपिंग सिर्फ पब्लिक इमर्जेंसी में या पब्लिक सेफ्टी के लिए ही की जा सकती है। जस्टिस रंजीत मोरे और एनजे जामदार ने कहा है कि अवैध तरीके से फोन टैप करने की इजाजत देने से मनमानी किए जाने का संदेश जाएगा और इससे सुप्रीम कोर्ट की बनाई प्रकिया और नागरिकों के मूलभूत अधिकारों के प्रति सम्मान कम होने लगेगा।

गौरतलब है कि साउथ बॉम्बे के एक बिजनसमैन विनीत कुमार ने कोर्ट में याचिका दाखिल की थी जिसके जवाब में कोर्ट ने यह आदेश दिया है। कुमार ने केंद्रीय गृह मंत्रालय के अक्टूबर, दिसंबर 2009 और फरवरी 2010 में दिए टैपिंग के तीन आदेशों के खिलाफ याचिका दाखिल की थी। सीबीआई ने उनके खिलाफ एक बैंक अधिकारी को 10 लाख रुपये रिश्वत देने का केस दर्ज किया था। हालांकि, कोर्ट ने अपने आदेश में यह साफ किया है कि वह सीबीआई के आरोपों की सत्यता पर फैसला नहीं दे रहा है।

कोर्ट ने कहा कि वह सरकार के रुख का समर्थन नहीं करता, खासकर एक मूलभूत अधिकार को लेकर और इससे एक गलत सीख जाएगी। कोर्ट ने कहा कि अगर सुप्रीम कोर्ट के फैसलों और कानून को टैपिंग के लिए नजरअंदाज किया जाएगा तो इससे कानून की अवमानना का मामला बनेगा, वह भी ऐसे मामले में जहां आर्टिकल 21 के तहत नितजा के अधिकार के हनन की बात हो। कानून के तहत कहा गया है कि किसी भी व्यक्ति को उसकी जिंदगी या निजी आजादी से महरूम नहीं रखा जा सकता, सिवाय कानून द्वारा तय प्रक्रिया के तहत। कुमार की याचिका में कहा गया था कि मंत्रालय के आदेश से इंडियन टेलिग्राफ ऐक्ट, 1885 के प्रावधानों का उल्लंघन होता है और अपील की कि बातचीत को नष्ट किया जाए। इसके लिए अपील में 1997 के पीपल्स यूनियर फॉर सिविल राइट्स वर्सेज यूनियन ऑफ इंडिया के लैंडमार्क जजमेंट का हवाला दिया गया।' इसके अलावा 2017 की 9 जजों वाली बेंच के केएस पुट्टास्वामी केस में मूलभूत आजादी का हवाला भी दिया गया।


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