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मुंबई : केवल 24 प्रतिशत लोग मुंबई में इलाज के लिए डिस्पेंसरी जाते हैं, जबकि 76 प्रतिशत लोग उपचार के लिए बड़े सरकारी अस्पतालों का रुख करते हैं। साफ है कि सामान्य बीमारी के इलाज के लिए भी मुंबईकर डिस्पेंसरी की बजाय अस्पतालों में जाते हैं। इससे बड़े अस्पतालों में भीड़ बढ़ती है और अच्छे इलाज की सुविधाएं प्रभावित होती है। मुंबई की स्वास्थ्य सेवाओं के बारे में प्रजा फाउंडेशन की रिपोर्ट से यह खुलासा हुआ है। रिपोर्ट के अनुसार, ज्यादातर लोग डिस्पेंसरी में सुविधाओं और स्टाफ की कमी के कारण अस्पताल जाते हैं। महानगर में डिस्पेंसरियों की संख्या भी यहां की जरूरत के मुताबिक नाकाफी हैं। विशेषज्ञों के अनुसार, डिस्पेंसरी के खराब हालात के पीछे बजट भी एक बड़ा कारण है। सरकार, खासकर बीएमसी की तरफ से स्वास्थ्य के क्षेत्र में दिया जाने वाला 74 प्रतिशत बजट अस्पतालों के लिए खर्च किया जाता है, जबकि बाकी का डिस्पेंसरीज के लिए।

प्रजा फाउंडेशन के डायरेक्टर मिलिंद म्हास्के ने कहा, 'हमने सभी वॉर्डों में 20 हजार लोगों पर एक सर्वे किया। इसमें आश्चर्यजनक खुलासा हुआ कि 73 प्रतिशत लोगों को किसी भी तरह की सरकारी हेल्थ इंश्योरेंस स्कीम के बारे में जानकारी नहीं थी। हालांकि जिन्हें जानकारी थी भी, उनमें से ज्यादातर लोगों को 'आयुष्मान भारत' के बारे में ही पता था। रिपोर्ट के अनुसार, केवल 27 प्रतिशत मुंबईकरों के पास 'हेल्थ इंश्योरेंस' है। इनमें से भी 58 प्रतिशत का प्राइवेट इंश्योरेंस है।


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