Latest News

मुंबई : पिछले 28 सालों से भारतीय रेलवे की एकमात्र मेडिकल ट्रेन ने अब तक 12.32 लाख लोगों का इलाज किया है। ये ट्रेन देश के उस पिछड़े इलाके में जाती है, जहां इलाज के लिए साधन नहीं है। 1991 में मध्य रेलवे द्वारा तैयार की गई लाइफलाइन एक्सप्रेस अब 7 डिब्बों की हो चुकी है, जो ट्रैक पर दौड़ता हुआ पूरा अस्पताल है। इस ट्रेन के दो कोच में अब कैंसर पीड़ितों की पूरी जांच की सुविधा होगी। हाल ही में इसमें स्तन कैंसर का पता लगाने वाली मेमोग्राफी मशीन फिट की गई है। 

देशभर के एकदम पिछड़े इलाकों में मरीजों का प्रोफाइल तैयार होता है। फिर उनकी डिमांड के मुताबिक सालभर का कैलेंडर तैयार होता है। कैलेंडर तैयार होने के बाद रेलवे द्वारा लाइफलाइन एक्सप्रेस को कैंप वाले इलाके में पहुंचा दिया जाता है। उस क्षेत्र के सबसे बड़े अस्पतालों या डॉक्टरों को कैंप के लिए पहले ही तैयार कर लिया जाता है। मरीजों को दी हुई तारीख पर इलाज या सर्जरी होती है। एक इलाके में ट्रेन सात से दस दिनों तक रहती है। मरीजों का इलाज मुफ्त में होता है। इसके लिए बड़ी-बड़ी कंपनियां कॉर्पोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलीटी (सीएसआर) के तहत अनुदान देती हैं। इस पूरे काम को इम्पैक्ट इंडिया फाउंडेशन द्वारा अंजाम दिया जाता है। 

जब ट्रेन को शुरुआत हुई थी, तब भारतीय रेलवे में पूरी उम्र काट चुके डिब्बों को चलते-फिरते ‘काम चलाऊ’ अस्पताल में बदला गया था। इस काम चलाऊ अस्पताल से आदीवासी इलाकों में कैटरेक्ट के ऑपरेशन से शुरुआत हुई। समय के साथ-साथ ईएनटी, प्लास्टिक सर्जरी और अब कैंसर का इलाज होने लगा है। इम्पैक्ट इंडिया फाउंडेशन से जुड़े एक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि कई बार रेलवे से ऐसी और ट्रेनों की डिमांड की गई है। पिछले 28 सालों में केवल एक ट्रेन ही तैयार की गई है, जबकि वक्त के हिसाब से हर एक जोन में एक ट्रेन होनी चाहिए थी। ट्रेन को किसी एक प्रोजेक्ट पर ले जाने के लिए 1 से 1.5 करोड़ रुपये खर्च हो जाता है, इसमें भी सरकार चाहे, तो मदद कर सकती है। 


Weather Forecast

Advertisement

Live Cricket Score

Stock Market | Sensex

Advertisement