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प्रियंका गांधी सक्रिय राजनीति में भले ही पहली बार सक्रिय हुई हैं लेकिन अमेठी और रायबरेली की राजनीति से उनका उतना ही लंबा रिश्ता है, जितना कि उनके भाई राहुल गांधी और माँ सोनिया गांधी का. इन दोनों संसदीय सीटों पर वो पिछले दो दशक लगातार आ-जा रही हैं, लोगों से मिलती-जुलती हैं और चुनाव के वक़्त कई दिन यहां समय भी देती रही हैं.

लेकिन इस बार प्रियंका गांधी औपचारिक रूप से कांग्रेस पार्टी की नेता हैं. राष्ट्रीय महासचिव हैं और उनके ज़िम्मे पूर्वांचल की क़रीब चालीस सीटें हैं जहां उन्हें पार्टी नेताओं के पक्ष में प्रचार करना है और उन्हें जिताना है. इतनी भारी-भरकम ज़िम्मेदारी के बावजूद प्रियंका गांधी चुनाव की घोषणा के बाद से अब तक अमेठी के कम से कम छह दौरे कर चुकी हैं.

स्थानीय पत्रकार योगेंद्र श्रीवास्तव कहते हैं, "दरअसल, स्मृति ईरानी ने जिस तरह से पिछले लोकसभा चुनाव में राहुल गांधी को टक्कर दी थी और चुनाव हारने के बावजूद स्मृति इरानी जिस तरह से लगातार अमेठी के दौरे करती रही हैं और जिस तरह से नरेंद्र मोदी के पक्ष में एक राष्ट्रवादी माहौल बनाने की कोशिश देश भर में हो रही है, उसे देखते हुए अमेठी की सीट राहुल गांधी के लिए इतनी भी सुरक्षित नहीं रह गई है कि बिना प्रचार-प्रसार के जीत लें."

स्मृति इरानी साल 2014 का लोकसभा चुनाव कांग्रेस उम्मीदवार राहुल गांधी से एक लाख से अधिक वोटों से हार गईं थीं, बावजूद इसके वो अमेठी का लगातार दौरा करती रही हैं और लोगों से संवाद करती रही हैं. कभी साड़ी वितरण तो कभी कुंभ की मुफ़्त यात्रा कराने जैसे जनता से सीधे जुड़ने वाले तरीक़े भी आज़माती रही हैं. अभी हाल ही में कुछ लोगों को जूते-चप्पल बंटवाने की घटना ने भी काफ़ी सुर्खियां बटोरी थीं.

इसके अलावा सरकारी योजनाओं का लाभ अमेठी वालों को दिलाने में भी स्मृति इरानी की काफ़ी दिलचस्पी रहती है और बीजेपी नेताओं की मानें तो कई योजनाओं को अमेठी के लिए स्वीकृत कराने में भी उन्हीं की ख़ासी भूमिका रही है. ज़ाहिर है, स्मृति इरानी ने ये सब इसलिए किया क्योंकि उन्हें 2019 में भी यहीं से चुनाव लड़ना था.



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