महाराष्ट्र की राजधानी मुंबई में डरा देंगे ये आंकड़े, 100 सैंपल में से 32 कोरोना पॉजिटिव
मुंबई : महाराष्ट्र की राजधानी मुंबई में कोरोना वायरस के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। आंकड़ों के अनुसार, अब यहां हर 100 सैंपल टेस्ट करने पर 32 लोग कोरोना पॉजिटिव मिल रहे हैं, यानी कोरोना पॉजिटिव रेट 32 फीसदी तक पहुंच चुका है। मरीजों की बढ़ती संख्या के कारण समय पर बेड न मिलने से लेकर इलाज में देरी तक का सामना मुंबईकारों को करना पड़ रहा है। मुंबई में अब तक 30 हजार से अधिक कोरोना मरीज सामने आ चुके हैं। इनमें से करीब 14 हजार मामले केवल 10 दिन में रिपोर्ट हुए हैं। तेजी से बढ़ते मरीजों की संख्या को देखते हुए जब एनबीटी ने आंकड़ों का अनालीसिस किया, तो चौंका देने वाले परिणाम सामने आए। बीएमसी से मिले आंकड़ों के अनुसार, 13 मई से 23 मई तक मुंबई में कोरोना वायरस के कुल 13,853 मामले सामने आए, जबकि इस दौरान 43,025 लोगों की टेस्टिंग की गई। परिणाम के अनुसार, 32 प्रतिशत लोग जांच पॉजिटिव पाए गए। जानकारों का मानना है कि बढ़ते मरीजों की संख्या के कारण बेड की समस्या हो रही है।
इस मरीजों की बढ़ती संख्या को लेकर जब एनबीटी ने बीएमसी की अडिशनल म्युनिसिपल कमिश्नर अश्वनी भिडे से बात की, तो उनका कहना था कि ऐक्टिव कॉन्टैक्ट को ढूंढना, घर-घर जाकर सर्वे करने और फीवर ओपीडी चलाने जैसे फैसले से फोकस्ड टेस्टिंग अधिक हो रही है, जिससे अधिक से अधिक लोग सामने आ रहे हैं। इन 10 दिन में भले ही मरीजों की संख्या बढ़ी हो, लेकिन इस दौरान टेस्टिंग पर भी जोर दिया गया है। आंकड़ों पर नजर डालें, तो रोजाना 4 हजार से अधिक कोरोना टेस्टिंग मुंबई में की जा रही है। मुंबई में 23 मई तक 1.7 लाख कोरोना टेस्टिंग की गई थी, इनमें से 43,025 टेस्टिंग केवल 10 दिन में की गई हैं यानी करीब 25 फीसद टेस्टिंग केवल 13 मई से 23 मई के बीच में की गई हैं।
यूं तो कोरोना वायरस बच्चों से लेकर बूढ़ों तक हर किसी को परेशान किया है, लेकिन एक खास उम्र वर्ग इससे अधिक प्रभावित है। राज्य सरकार के हेल्थ विभाग से मिले आंकड़ों के अनुसार, 31-40 के लोगों में सबसे अधिक कोरोना वायरस की पुष्टि हो रही है। रविवार तक राज्य में कोरोना वायरस के 47021 मरीजों के अनलीसिस के अनुसार, 9991 मरीज 31-50 उम्र के, 9798 मरीज 21-30 उम्र के बीच के हैं। सबसे कम मरीजों की संख्या 90 साल से अधिक के लोगों में देखने को मिली है। विशेषज्ञों के अनुसार, भले ही 31-40 साल के लोगों में बीमारी की पुष्टि अधिक देखने को मिल रही है, लेकिन अच्छी बात यह है कि इनमे रिकवरी रेट भी अधिक है।