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बांग्लादेश की निर्वासित लेखिका तसलीमा नसरीन ने भारत में बनाए गए नए नागरिकता संशोधन क़ानून को उन लोगों के लिए अच्छा बताया है जिन्हें पड़ोसी देशों में अत्याचारों के कारण भारत आना पड़ा है.

हालांकि, उनका यह भी मानना है कि ग़ैर-मुस्लिमों के अलावा इस क़ानून में नास्तिकों, उदारवादियों, धर्मनिरपेक्षों और सुधारवादी मुसलमानों को भी शामिल किया जाना चाहिए क्योंकि वो भी कट्टरपंथी मुसलमानों के ज़ुल्मों का सामना करते हैं.

नागरिकता संशोधन क़ानून को लेकर भारतीय मुसलमानों की ओर से चिंता जताए जाने को बेमानी बताते हुए तसलीमा यह भी कहती हैं कि ज़रूरी है कि मुसलमान समुदाय भारत के अन्य धार्मिक समुदायों की तरह यूनिफ़ॉर्म सिविल कोड को स्वीकार करें.

बांग्लादेश में साल 1992 में बाबरी मस्जिद ढहाए जाने के बाद हिंदू विरोधी दंगे हुए थे. तसलीमा नसरीन का मशहूर उपन्यास 'लज्जा' इसी पृष्ठभूमि पर आधारित है जिसमें उन्होंने हिंदू समुदाय के लोगों के हालात का ज़िक्र किया है.

कट्टरपंथियों से धमकियां मिलने के बाद 1994 से ही वे बांग्लादेश से बाहर रही हैं. वह स्वीडन की नागरिक हैं और पिछले कई सालों से भारत में वीज़ा पर रह रही हैं.


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