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  काजी मुजम्मिल अहमद ने कहा कि मैंने निकाह पढ़ाया था, निकाहनामा बिल्कुल सही है। उस वक्त समीर, शबाना (कथित पहली पत्नी), पिता सब मुसलमान थे, काजी ने कहा कि अगर समीर हिंदू होते तो निकाह ही नहीं होता। क्योंकि शरियत के हिसाब से ऐसा नहीं हो सकता। शरियत के खिलाफ जाकर काजी निकाह नहीं पढ़ाता। आज वह कुछ भी कहें, उस वक्त समीर मुसलमान थे।

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