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मुंबई, पुणे-मुंबई एक्सप्रेस-वे पर दुर्घटना से होनेवाली मौत के मामलों पर अंकुश लगाने के लिए शुरू की गई जीरो फेटलिटी कॉरिडोर परियोजना रंग ला रही है। इस परियोजना के अंतर्गत की जा रही उपाय योजना से हाई-वे पर होनेवाली दुर्घटनाओं के मामले में कमी आने के साथ ही मौतों के आंकड़ों में ५४ प्रतिशत की गिरावट देखी गई है, यह गिरावट साल २०१६ से चलाई जा रही ‘जीरो-फेटलिटी कॉरिडोर’ परियोजना, एमएसआरडीसी, महाराष्ट्र राजमार्ग पुलिस, महिंद्रा एंड महिंद्रा और सेवलाइफ फाउंडेशन की एक संयुक्त पहल का नतीजा है। इस पहल का मकसद सड़क हादसों को कम करने के लिए शुरू किया गया था।
साल २०१८ में जब ये परियोजना शुरू हुई थी, तब राष्ट्रीय महामार्ग (४८ एनएच) ४८ पर मुंबई-पुणे विभाग में २६८ मौत के मामले दर्ज किए गए थे। इस परियोजना के कारण साल २०१९ में मौत का आंकड़ा कम होकर २०१ हो गया। सेवलाइफ फाउंडेशन द्वारा जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार २०२० में एक्सप्रेस-वे पर ६३ दुर्घटनाओं में ६६ लोगों की मौत हुई। हालांकि यह आंकड़ा २०१६ की आधार रेखा से मृत्यु दर में ५६ प्रतिशत से अधिक की कमी दर्शाता है।
२०२० की पहली और अंतिम तिमाही के औसत आंकड़ों को देखें तो कोविड-१९ के प्रभाव से भी दुर्घटनाओं के आंकड़ों में कमी देखी गई है। जबकि इस दौरान मुंबई-पुणे एक्सप्रेस-वे का ट्रैफिक नॉर्मल था। यही वजह है कि २०२० की पहली और आखिरी तिमाही में एक्सप्रेस-वे पर कुल ३६ मौतें हुर्इं। इस पहल पर एमएसआरडीसी के संयुक्त प्रबंध निदेशक, डॉ. चंद्रकांत पुलकुंदवार का मानना है, ‘एक्सप्रेस-वे पर हर मौत हमारे लिए गंभीर चिंता का विषय है। हालांकि कोविड ने आपातकालीन सेवाओं पर अत्यधिक बोझ के साथ चीजों को कठिन बना दिया है, हम तब तक इस पहल को जारी रखेंगे, जब तक कि हम मुंबई और पुणे के बीच इस महत्वपूर्ण लिंक पर डेथ रेट शून्य नहीं कर देते।’
गौरतलब है कि एमएसआरडीसी ने सुझावों को लागू करने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। अब तक १,२०० से अधिक इंजीनियरिंग संबंधी सुझावों को लागू किया जा चुका है।


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