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मुंबई, कहते हैं फिल्में समाज का आईना होती हैं, जिसके अंत में समाज के लिए यही संदेश होता है कि बुरे काम का नतीजा बुरा ही होता है। हालांकि, वास्तविक जीवन में घटी घटनाओं पर बनी कुछ फिल्में इसमें अपवाद होती हैं। ऑनर किलिंग पर मराठी में ऐसी ही एक फिल्म आई थी ‘सैराट’, जो कि काफी लोकप्रिय हुई थी। इसी फिल्म की कहानी से मिलती-जुलती एक घटना हरियाणा के सोनीपत जिले में घटी थी। हालांकि, हकीकत में सोनीपत में घटी घटना, नृशंसता के मामले में फिल्म ‘सैराट’ की कहानी से कहीं ज्यादा बर्बर थी।
हमारे देश में कन्या भ्रूण की हत्याओं का सिलसिला आज भी जारी हैं। इसकी कई वजहें हैं, जिनमें बेटी के लिए दहेज का इंतजाम और आत्मसम्मान खोने का डर यानी बेटी के प्रेम विवाह करने पर परिवार की प्रतिष्ठा के कलंकित होने का भ्रम, प्रमुख है। यही वजह है कि देश में प्रेम विवाह करनेवाली बेटियों व उनके ससुरालीजनों की फिल्म ‘सैराट’ की तर्ज पर कत्ल की खबरें आए दिन देश के किसी-न-किसी हिस्से में सुनने को मिल जाती हैं। हैरानी तब होती है जब मजहब, जाति और गोत्र के नाम पर जाति, समाज और पूरा गांव अपराधियों के साथ खड़ा हो जाता है। आत्म-सम्मान के भ्रम के कारण ‘ऑनर किलिंग’ का ऐसा ही एक ५ साल पुराना मामला इन दिनों सुर्खियों में आया है, जिसमें अदालत ने हत्या के दो आरोपियों को दोषी ठहराया है और उनमें से एक आरोपी को मौत की सजा सुनाई है।
यह घटना हरियाणा के सोनीपत जिला स्थित खरखौदा गांव की है, जहां वर्ष २०१६ के नवंबर महीने में एक ही परिवार के तीन लोगों की बेरहमी से हत्या कर दी गई थी। मृतकों की पहचान प्रदीप धानक, उसके पिता सुरेश और मां सुनीता के रूप में हुई थी। इस घटना में प्रदीप की पत्नी सुशीला और भाई सूरज भी घायल हुआ था। हैरानी की बात ये कि हमलावर कोई और नहीं, बल्कि सुशीला का भाई सतेंद्र उर्फ मोनू और झज्जर के गांव हसनपुर निवासी उसका दोस्त हरीश था। सतेंद्र अपनी बहन सुशीला और प्रदीप के प्रेम विवाह से नाराज था। हुआ ऐसा था कि खरखौदा निवासी प्रदीप ने झज्जर के गांव बिरधान की सुशीला के साथ तीन साल पहले प्रेम विवाह किया था। सुशीला सवर्ण वर्ग से थी, जबकि प्रदीप पिछड़ी जाति से था। इसी वजह से सुशीला के परिवारवाले इस शादी से नाराज थे।
सुशीला के परिजन और जाति के लोग दो साल तक सुशीला और उसके प्रेमी-पति प्रदीप की जान के पीछे पड़े रहे लेकिन जब सुशीला गर्भवती हो गई तो उनका पारा सातवें आसमान पर पहुंच गया। आरोपितों ने सामाजिक लोगों को बीच में डालकर समझौता कराने का झांसा दिया और वे प्रदीप के घर आने-जाने लगे, जबकि उनकी मंशा प्रदीप के पूरे परिवार को एक साथ मौत के घाट उतारने की थी। १८ नवंबर, २०१६ की रात प्रदीप के घर दो युवक डस्टर कार में पहुंचे। घर में घुसकर उन्होंने ताबड़तोड़ गोलियां बरसानी शुरू कर दीं। गोलीबारी में सुशीला, प्रदीप, सुरेश, सूरज और सुनीता को गोलियां लगी। प्रदीप और सुनीता की मौके पर मौत हो गई थी। बाद में इलाज के दौरान अस्पताल में सुरेश ने भी दम तोड़ दिया। हालांकि सुशीला और सूरज गोली लगने के बाद भी बच गए थे। जांच में सामने आया कि साजिश में सतेंद्र व हरीश के अलावा सुशीला के भाई सोनू व पिता ओमप्रकाश भी शामिल थे। पुलिस सभी आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया था।
सोनीपत के एडिशनल सेशन जज आर.पी. गोयल ने मामले में सोमवार को आरोपी सतेंद्र और हरीश को दोषी करार दिया था। मंगलवार को सजा पर सुनवाई के दौरान दोषी करार दिए गए हरीश को फांसी की सजा सुनाई, जबकि मुख्य दोषी सतेंद्र उर्फ मोनू भगोड़ा घोषित है, जिसके चलते उसे सजा नहीं सुनाई जा सकी। विशेष टिप्पणी में न्यायाधीश आर.पी. गोयल ने कहा, यह मामला दुर्लभ से दुर्लभतम श्रेणी का है। यह समाज में जातिगत वैमनस्यता बढ़ानेवाली घटना थी, जिसमें कड़ी सजा दी गई है। फांसी की सजा पानेवाले हरीश को जेल भेज दिया गया है। वारदात के समय सुशीला गर्भवती थी। उसे घायल हालत में पीजीआई में भर्ती कराया गया था। वहीं पर रात में उसने बेटे को जन्म दिया था। स्वस्थ होने के बाद अस्पताल से सुशीला को उसकी बड़ी बहन और रिश्तेदार अपने साथ ले गए थे। वहीं फरार दोषी सतेंद्र को सजा उसकी गिरफ्तारी के बाद सुनाई जाएगी।


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