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उल्हासनगर, कहते हैं जब हौसले बुलंद हों तो किसी भी मुश्किल लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है। इस घोष वाक्य को एक नेत्र दिव्यांग दंपति साकार करते हुए गाड़ियों में मनमोहक गीत गाकर चार लोगों की परवरिश कर रहा है। इस नेत्र दिव्यांग की ख्वाहिश है कि उसकी दोनों मासूम बच्चियां उच्च शिक्षा प्राप्त करें।
किशोर घडलिंग व उनकी पत्नी अंजू दोनों ही मिलकर लोकल ट्रेन में पुराने हिंदी व मराठी के भक्ति व लोकगीत जैसे मनमोहक गीत गाकर लोगों को मोहित कर लेते हैं। किशोर ने बताया कि उनके गाने को सुनकर लोकल के यात्री दिल खोलकर मदद करते हैं। कई बार रेल यात्री उनके यहां पर शुभ कार्य जैसे जन्मदिन, शादी की सालगिरह आदि के अवसर पर गाने के लिए बुलाते हैं। उनकी गायक मंडली है। सिंगल साज पर १२ हजार तथा डबल साज पर २४ हजार रुपए लिए जाते हैं। समय के अनुसार मंडली की फीस ली जाती है। वे प्रतिदिन ५ से ६ सौ तक कमा लेते हैं। जिस तरह से नौकरी करनेवाले समय से काम पर निकलते हैं, वही स्थिति उनकी भी है। किशोर ने बताया कि वे वांगनी स्टेशन के पास किराए के मकान में रहते हैं। वांगनी (पूर्व) में ३०० के करीब नेत्र दिव्यांग रहते हैं। इसका कारण यह है कि स्टेशन के पास उनकी बस्ती है। उन्हें सरकार की तरफ से राशन नि:शुल्क दिया जाता है। एक हजार रुपए दिव्यांग सहायता निधि सरकार की तरफ से दी जाती है। सामाजिक संस्थाएं भी उनकी मदद करती हैं। उल्हासनगर के जगदीश पटेल व अंबरनाथ के राजेश अग्रवाल ने कोरोना काल में नेत्र दिव्यांग को काफी मदद की है। कई नेत्र दिव्यांग लोगों ने वर्ली स्थित दिव्यांगों को तकनीकी प्रशिक्षण विद्यालय से जैसे पंखा बनाने, ब्लाइंड स्टीक, वाइंडिंग, वायरिंग जैसे प्रशिक्षण लिए हैं, परंतु समाज उन्हें काम देने में डरता है। इस कारण काफी नेत्र दिव्यांगों को मजबूरी में भीख मांगना पड़ता है। किशोर ने बताया कि वे अपने घर की बिजली की वायरिंग, पंखे, खुद बनाते हैं।



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