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मुंबई : लॉक डाउन खुलने के साइड इफेक्ट दिखने लगे हैं और अब अस्पतालों में रक्त की कमी होने लगी है, जिससे मरीज़ों और उनके रिश्तेदारों को दर-बदर भटकना पड़ रहा है। चूंकि अब चीजें धीरे धीरे सामान्य होने लगी हैं, इसलिए अब लोगों के भर्ती होने का सिलसिला भी तेज हो गया है, जिसका असर यह हुआ है कि ऐसे मरीजों को जिनके इलाज के लिए खून चढ़ाने कि जरूरत होती है उनके सामने मुश्किलें पेश आने लगी हैं। यह परेशानी सिर्फ मरीज और उनके रिश्तेदारों को ही नहीं, बल्कि अस्पतालों और राज्य में खून के लेन-देन, प्रबंधन पर निगाह रखने वाली संस्था स्टेट ब्लड ट्रांसफ्यूजन काउंसिल (एसबीटीसी) को भी आ रही है, जिसने सभी सहकारी संस्थाओं, हाउसिंग सोसायटियों, चैरिटेबल ट्रस्टों आदि से अपील की है कि वे आगे आकर रक्तदान करें और लोगों की जान बचाएं।

एसबीटीसी के एक अधिकारी ने बताया कि 25 मार्च से ही देशबंदी के बाद से लोग जहां के तहां घरों में कैद थे, इसलिए न रक्तदान हो रहे थे और ना ही लोग अस्पतालों में भरती हो रहे थे। पर लॉकडाउन खुलने के बाद अब मरीज तो अस्पतालों में आने लगे हैं, पर रक्तदान कैम्प नहीं लग पा रहे हैं और इसका नतीजा ब्लड बैंक की सेहत पर पड़ा है। उनके अनुसार, अस्पतालों में दिन रात काम कर रहे डॉक्टरों ने बताया है कि सरकारी से लेकर प्राइवेट अस्पतालों में खून की कमी अब तेज गति से हो रही है, ऐसे में अगर अस्पताल में कोई सर्जिकल ऑपरेशन होता है तो रक्त को लेकर हमारी चिंता और भी बढ़ जा रही है। उन्होंने बताया कि राज्य भर के सभी निजी, सरकारी अस्पतालों में यही हाल है। गौरतलब है कि मुंबई में 58, पुणे 35 और ठाणे में 22 ब्लड बैंक्स हैं।

अस्पताल के सूत्रों के मुताबिक स्टेट ब्लड ट्रांसफ्यूजन काउंसिल ने जिन आंकड़ों को जुटाया है, उसके अनुसार, केईएम और सायन अस्पताल में वर्तमान में सिर्फ एक हफ्ते का ही ब्लड बचा हुआ है। हमारे आंकड़े बताते हैं कि कूपर अस्पताल, जीटी अस्पताल, होली फैमिली अस्पताल, भाभा अस्पताल, राजावाड़ी अस्पताल और आशीर्वाद ब्लड बैंक, सुशीलाबेन ब्लड बैंक, एशियन हार्ट इंस्टीट्यूट, मसिना अस्पताल, संत निरंकारी जैसे अस्पतालों के ब्लड बैंक में बहुत कम ब्लड बचा है। उन्होंने बताया कि कुछ लोग ऐसे भी आगे आये हैं जो इमरजेंसी में रक्तदान करने सीधे अस्पताल आ जाते हैं। याद रहे कि जून महीने में जब केईएम अस्पताल में खून की कमी हुई और ऑपरेशन टलने लगे तो महाराष्ट्र असोसिएशन ऑफ रेजिडेंट डॉक्टर (मार्ड) के डाक्टरों ने अस्पताल में एक रक्तदान शिविर अयोजित किया था, जिसकी चारों ओर तारीफ हुई। इसमें रेजिडेंट डॉक्टर सहित इंटर्न और जूनियर डॉक्टरों ने कुछ ही समय में 100 यूनिट से अधिक रक्त इकट्ठा कर लिया।

इस बाबत जब एसबीटीसी के डायरेक्टर अरुण थोरात से संपर्क किया तो उन्होंने बताया कि पिछले साल की अपेक्षा इस साल रक्तदान और ब्लड के कलेक्शन में 50 फीसदी की कमी आई है। चूंकि अब मरीजों का एडमिशन अस्पतालों में ज्यादा हो रहा है और रक्तदान बहुत कम हो रहे हैं, इसलिए ब्लड की कमी हो गई है। उन्होंने बताया कि गर्मियों या छुट्टियों के दौरान खून की कमी अस्पतालों में अक्सर हो जाती है, पर लॉकडाउन और इसके लम्बे साइड इफ़ेक्ट के कारण इस बार रक्तदान शिविर भी ज्यादा नहीं लग सके जिससे अबकी बार स्थिति थोड़ी नाजुक हो चली है।



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