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नई दिल्ली : कोरोना वायरस के प्रसार को रोकने के लिए लॉकडाउन के ऐलान के बाद अपने-अपने घरों का रुख करने वाले प्रवासी मजदूरों को वापस लाने की जद्दोजहद की जा रही है। उनके बिना फैक्ट्रियां पूरी क्षमता से उत्पादन नहीं कर पा रही हैं जिससे अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने की बड़ी चुनौती खड़ी हो गई है। दिलचस्प बात यह है कि कोरोना काल से पहले जिन राज्यों ने प्रवासियों को बोझ मानते हुए नौकरियों में स्थानीय नागरिकों के लिए आरक्षण का कानून लाया था या इस पर विचार कर रहे थे, आज वो इन्हीं प्रवासियों की वापसी का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं। इनकी बेताबी का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि फऐक्ट्री मालिक मजदूरों को कारों, बसों, ट्रेनों और यहां तक कि हवाई जहाजों से आने का ऑफर दे रहे हैं और ला भी रहे हैं। 
अब 2019 के आंकड़ों पर गौर करें तो कम-से-कम पांच राज्यों- महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, हरियाणा और मध्य प्रदेश - ने अपने यहां सरकारी नौकरियों के साथ-साथ निजी औद्योगिक संस्थानों में भी स्थानीय लोगों के लिए आरक्षण का कानून ला दिया है। उधर, गोवा और हिमाचल प्रदेश जैसे राज्य स्थानीय लोगों की भर्ती करने पर उद्योगों को इन्सेंटिव दे रहे हैं। प्रवासियों को रोकने और स्थानीय लोगों के लिए जॉब सुरक्षित करने की दिशा में कदम बढ़ाने वाला नया राज्य हरियाण है। उप-मुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला ने शुक्रवार को कहा कि सरकार प्राइवेट संस्थानों की 75% नौकरियां राज्य के युवाओं के लिए आरक्षित करने जा रही है जिसके लिए विधानसभा में एक विधेयक पेश किया जाएगा। चौटाला ने 2019 के विधानसभा चुनाव अभियान के दौरान ही राज्यवासियों से यह वादा किया था और पिछले महीने राज्य कैबिनेट ने इस संबंध में एक अध्यादेश को मंजूरी दी थी।
इसी हफ्ते मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि राज्य की सरकारी नौकरियों पर सिर्फ मध्य प्रदेश के बच्चों का ही हक होगा। दरअसल, वहां 27 विधानसभा सीटों पर उप चुनाव होने वाले हैं। ऐसे में कोई भी राजनीतिक दल चौहान के इस बयान का विरोध करने की हिम्मत नहीं जुटा सकी। वैसे भी चौहान के घोर प्रतिद्वंद्वी और पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ भी राज्य की प्राइवेट नौकरियों में स्थानीय लोगों के लिए 70% रिजर्वेशन की बात कह चुके थे। इसलिए, कमलनाथ ने कहा, 'आखिरकार आप (चौहान) युवाओं के रोजगार के मुद्दे पर 15 साल बाद जागे हैं।

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