मुंबई : मुर्दों के बीच बीमार का इलाज, झुग्गियों में कोरोना की त्रासदी.. उद्धव सरकार के दावों की हकीकत क्या?
मुंबई : देश में कोरोना के त्रासदी काल में सबसे बुरी तरह प्रभावित महाराष्ट्र में सियासत का दौर जारी है। भले ही उद्धव ठाकरे बढ़ते संक्रमण के बीच केंद्र सरकार को तमाम नाकामियों का जिम्मेदार बता रहे हों, लेकिन महाराष्ट्र में महाअघाड़ी सरकार और बीएमसी की लचर व्यवस्थाएं भी इसके लिए उतनी ही जिम्मेदार हैं। चाहे अस्पतालों में शवों के बीच मरीजों के इलाज के वीडियो हों या धारावी में बढ़ता संक्रमण सारी तस्वीरें ये बताने को काफी हैं कि महाराष्ट्र में कोरोना रोकने में बड़ी लापरवाही हुई है। वहीं 1700 से अधिक लोगों की मौत के आंकड़े ये साबित करने को काफी हैं, महाराष्ट्र सरकार कोरोना रोकने में कितनी सफल हुई है।
महाराष्ट्र जहां अब तक 52 हजार से अधिक कोरोना मरीज सामने आ चुके हैं वो पूरे देश में कोरोना से प्रभावित सबसे बड़ा इलाका बन चुका है। मुंबई शहर के तमाम हिस्सों में संक्रमण की रफ्तार से हजारों लोग संक्रमित हो चुके हैं। वहीं बीएमसी 11 आईएएस अधिकारियों की फौज लेकर भी संक्रमण के इस संकट को रोकने में नाकाम है। एक ओर जहां धारावी जैसी बस्तियों में सोशल डिस्टेंसिंग का पालन ना करा पाना बीएमसी की नाकामी दिखा रहा है, वहीं अलग-अलग सरकारी अस्पतालों में लोगों के शवों के बीच इलाज होने के वीडियो ये बता रहे हैं कि दावों की जमीनी हकीकत क्या है।
33441 करोड़ रुपये के बजट वाली बीएमसी भले देश की सबसे अमीर महानगरपालिका हो, लेकिन दावों की हकीकत बीएमसी के अस्पताल बयां करने को काफी हैं। अस्पतालों में मरीजों का इलाज मुर्दों के बीच हो रहा है। बिस्तरों पर पड़ी लाशों के बीच संक्रमित मरीजों का इलाज हो रहा है, लेकिन बीएमसी का कहना है कि शवों को मर्चरी तक ले जाने के लिए उसने कर्मचारियों को फिनांशल इंसेंटिव देने की बात कही है ऐसे में कोई मरीज ऐसी स्थिति में नहीं कि उसका इलाज शवों के बीच हो। दूसरी ओर दावों की हकीकत ये है कि मंगलवार को ही मुंबई के एक अस्पताल में शवों के बीच मरीजों के इलाज का वीडियो सामने आया है।
उद्धव सरकार की नाकामियों का एक उदाहरण ये भी है, कि जिस मुंबई शहर को कभी ना सोने वाला शहर कहा जाता था, वहां दो महीने से जीवन की रफ्तार थम गई है। अपनी रोजी-रोटी छिन जाने के बाद हजारों मजदूर भूख से तड़पने की स्थिति से बचने को सड़क पर दिखाई दे रहे हैं। सभी की एक मांग है कि उन्हें घर वापस भेजा जाए, लेकिन राज्य के स्तर पर इसके लिए क्या इंतजाम है इसे बताने की बजाय उद्धव केंद्र से हर रोज ट्रेनों पर सियासत कर रहे हैं।
मुंबई में बीएमसी और पुलिस की नाकामियां भी उद्धव सरकार की लचर व्यवस्था को साबित कर चुकी हैं। किसी अफवाह को लेकर कई बार स्टेशनों पर हजारों प्रवासी मजदूर इकट्ठा हो चुके हैं और सोशल डिस्टेंसिंग के उल्लंघन की तमाम तस्वीरें भी लगातार सामने आ रही हैं, लेकिन अफवाह क्यों फैल रही और इसे रोकने के कदम क्या हैं इसपर राज्य सरकार कोई खास जानकारी देने को तैयार नहीं है। राजनीतिक विशेषज्ञ मानते हैं कि महाविकास अघाड़ी की सरकार में उद्धव तमाम फैसलों में कन्फ्यूजन की स्थितियों में आ गए हैं। सरकार के कई फैसले भी यह बताते हैं कि कोरोना के संकट काल में फैसलों को लेने में उद्धव सरकार ने बड़ी देरी की।
फिर चाहे वो कोरोना के डेडिकेटेड अस्पताल बनाने की बात हो, इंडस्ट्री के लेबर को घर भेजने की बात हो या मास टेस्टिंग का डिसीजन, उद्धव सभी में देर और नाकाम दिखाई दिए। लेकिन तमाम नीतिगत नाकामियों के बीच हो रही राजनीति मुंबई के लोगों को और बेबस बना रही है। राजधानी की बस्तियों में कोरोना का संक्रमण बढ़ता जा रहा है, सड़कों पर मजदूर बेबस दिखाई दे रहे हैं, सोशल डिस्टेंसिंग का फॉर्म्यूला कागजों पर ही सीमित हो गया है और सबके बीच उद्धव ठाकरे केंद्र पर आरोप लगा रहे हैं और केंद्र इनका जवाब देने में ही व्यस्त है।