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मुंबई : सत्ता का स्वाद चखने, मंत्री पद पाने के अरमान लेकर जो लोग चुनाव से पहले भाजपा में शामिल हुए थे, उद्धव ठाकरे के नेतृत्व में महा विकास अघाडी की सरकार के बहुमत साबित करते ही उनके अरमान लुट गए हैं। अगर चुनाव से पहले इन नेताओं ने निष्ठाएं न बदली होतीं, तो इनमें से कई महा विकास आघाडी सरकार में बड़े पोर्टफोलियो के साथ सत्तासीन होते, लेकिन अब यह विपक्ष की भूमिका निभाते दिखाई देंगे।

बता दें कि लोकसभा और विधानसभा चुनाव के दौरान बड़ी संख्या में राकांपा-कांग्रेस के नेता भाजपा में शामिल हुए थे। इनमें राधाकृष्ण विखे पाटील, शिवेंद्रराजे भोसले, नितेश राणे, बबनराव पाचपुते, गणेश नाईक, जयकुमार गोरे और कालिदास कोलंबकर प्रमुख है। इनके अलावा वैभव पिचड, नमिता मुंदड़ा, काशीराम पावरा, गोपाल दास अग्रवाल, हर्षवर्धन पाटील, मदन भोसले, रविशेठ पाटील व भरत गावित जैसे मजबूत नेताओं के नाम भी शामिल हैं। विधानसभा चुनाव के दौरान इन नेताओं को पूरा भरोसा था कि राज्य में देवेंद्र फडणवीस के नेतृत्व में भाजपा पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में वापसी करेगी। कांग्रेस-राकांपा के सामने विपक्ष का नेता बनने लायक संख्या नहीं आएगी और पांच साल सत्ता से दूर रहने के बाद उनके अच्छे दिन आ जाएंगे। लेकिन शरद पवार के पावर और फडणवीस सरकार के खिलाफ किसानों की नाराजगी, व्यापारियों का असंतोष और भाजपा के भितरघात और शिवसेना के सात बिगड़े रिश्तों ने पासा पलट दिया। वहीं राकांपा छोड़कर शिवसेना में शामिल हुए पांडुरंग बरोरा, भास्कर जाधव, जयदत्त क्षीरसागर, रश्मि बागल और सचिन अहीर जैसे नेता फायदे में रहे।


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