महाराष्ट्र बोर्ड की बाल भारती किताबों में बदले चित्र
मुंबई : सामान्यता स्कूल की किताबों में बने चित्र मां को रसोई में सब्जियां काटते हुए और पिता को अखबार पढ़ते हुए दिखाते हैं। यही छवि हमारे दिमाग में बस जाती है लेकिन अब अगली पीढ़ी के दिमाग में यह छवि बदलने वाली है। बदलती सामाजिक संरचना को ध्यान में रखते हुए, बाल भारती ने लैंगिक समानता को बनाए रखने और महिलाओं को अधिक प्रगतिशील दिखाने के लिए किताबों में ये चित्र बदल दिए हैं। राज्य बोर्ड की संशोधित कक्षा दो की पाठ्यपुस्तक में सशक्त महिलाओं की छवियों को दिखाया है। इसके पेज 20 पर, महिलाओं को डॉक्टर और पुलिस अधिकारी के रूप में दर्शाया गया है। किताबों के पहले संस्करणों में इन पेशों को पुरुषों द्वारा दर्शाया जाता था और महिलाओं को घरेलू कामों या सब्जी बेचने जैसे चित्रों के जरिए प्रदर्शित किया जाता था। गैर-अंग्रेजी माध्यम के 2006 के कक्षा एक की किताब देंखे तो पता चलता है कि एक दशक पहले कैसे महिलाओं को प्रदर्शित किया जाता था। इस पाठ्यपुस्तकों में, साड़ी पहने एक मां रसोई में काम करती हुई दिखाई देती है, जब बच्चे दरवाजे से अंदर जाते हैं। इसमें एक फैक्ट्री के पास एक आदमी की तस्वीर भी है, जिसमें कहा गया है, मैं एक कार्यालय में काम करता हूं,एक घर के बगल में खड़ी एक महिला की छवि से यह कहते हुए दिखाई देती है, मैं घर पर काम करती हूं। महिलाओं को इसके अलावा नर्स, शिक्षक और दुकान सहायक के रूप में ही दिखाया गया है।
बदली हुई किताब में एक अध्याय है, नीना का सपना। यह एक लड़की की कहानी बताती है जो पक्षियों की तरह उड़ने और मछली की तरह तैरने का सपना देखती है, केवल उसकी मां द्वारा बताया जाता है, लड़कियां ये सब नहीं कर सकती हैं। हालांकि, उनके गांव में रतुजा नाम की एक पायलट आती है। नीना उससे मिलती है और वह अपनी मां से कहती है, देख मां लड़कियां उड़ सकती हैं रतुजा उससे कहती है, वह समुद्र भी पार कर सकती है। पेज नंबर 52 पर, एक पुरुष और एक महिला को एक साथ सब्जियां साफ करते हुए दिखाया गया है। पेज 32 पर, एक व्यक्ति को कपड़े प्रेस करते हुए दिखाया गया है। पिछली पाठ्यपुस्तकों में साझा घरेलू जिम्मेदारियों की कोई तस्वीर नहीं होती थी।
इस पाठ्यक्रम पर काम करने वाले अडवांस सेंटर फॉर वीमेन स्टडीज, स्कूल ऑफ डिवेलपमेंट स्टडीज के चेयपर्सन और टीआईए की प्रफेसर ने इग्नू (इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय), एसएनडीटी और एमएचआरडी की ई पीजी पाठशाला के लिए इस पाठ्यक्रम पर काम किया। उन्होंने इस बदलाव का स्वागत किया है। उन्होंने कहा, पॉप्युलेशन फर्स्ट और कई अन्य संगठनों ने कक्षाओं में जेंडर सेंसिटाइजेशन पर काम किया है। महिलाएं आज खुद को भी गृहणी नहीं मान रही हैं। अर्थव्यवस्था में उनका योगदान सामने है। उन्होंने कहा, 'जब मैं स्कूलों का दौरा करता हूं, तो देखता हूं कि लड़कियों की धारणा बदल गई है। वर्षों से राज्यों ने पाठ्यपुस्तकों में पूर्वाग्रहों से निपटने के लिए समितियों की नियुक्ति की है। 1990 के दशक में, भारतीय शिक्षा संस्थान ने पाठ्यपुस्तकों पर विशेष सत्र आयोजित किए।