पाकिस्तान की किस पार्टी जैसे हैं कांग्रेस के हालात
कोई भी पाकिस्तानी इंडियन नेशनल कांग्रेस की मजबूरी समझ सकता है क्योंकि पाकिस्तान में पीपल्स पार्टी भी इसी मजबूरी से जूझ रही है. जब तक ज़ुल्फ़िक़ार अली भुट्टो और उनकी बेटी बेनज़ीर भुट्टो थीं, तब तक भुट्टो ख़ानदान पार्टी के पांव की ज़ंजीर नहीं, बल्कि ताक़त था. मगर बेनज़ीर की मौत के बाद जब से पार्टी उनके पति आसिफ़ अली ज़रदारी के पास आई तब से एक ही परिवार का लगातार नेतृत्व पार्टी के पांव की ज़ंजीर बन गया. पीपल्स पार्टी ने 2008 के चुनाव तो बेनज़ीर की मौत के बल पर मिलने वाली हमदर्दी के सहारे जीत लिए पर 2013 और फिर 2018 के चुनाव में पीपल्स पार्टी सिकुड़कर पूरे देश के बजाय सिर्फ़ एक राज्य यानी सिंध का गुट बन गई. सबसे बड़े राज्य पंजाब से उसका ऐसे सफ़ाया हुआ जैसे कांग्रेस का उत्तर प्रदेश से. मगर पार्टी लीडरशिप ने अपनी हार की ज़िम्मेदारी क़बूल करते हुए इस्तीफ़ा देना तो रहा एक तरफ़, इस्तीफ़ा देने का कोई इशारा तक न दिया. और अगले चुनाव जब भी होंगे पीपल्स पार्टी माशाल्लाह इन्हीं पुराने चेहरों के साथ भाग लेगी. मुस्लिम लीग नवाज़ के साथ भी यही विडंबना है. नवाज़ शरीफ़ जेल चले गए तो शाहबाज़ शरीफ़ लीडरशिप की गद्दी पर बैठ गए. वो न होंगे तो उनके बेटे हम्ज़ा शरीफ़ या नवाज़ की बेटी मरियम शरीफ़ पार्टी चलाएंगी. अगले चुनाव में भी यही चेहरे देखने को मिलेंगे.
एक ही परिवार के गिर्द घूमने वाली पार्टियां केंद्र से लेकर राज्य और गांव की पंचायत तक मेरिट पर आधारित शुद्ध लोकतंत्र चाहती हैं. वो देश को बीसवीं से इक्कीसवीं शताब्दी तक भी ले जाना चाहती हैं. शर्त बस इतनी है कि कोई उनके पीढ़ी दर पीढ़ी पार्टी चलाने को चैलेंज न करे.
ऐसे राजनीतिक दलों में मतदाताओं को अपनी ओर खींचने के लिए न नए आइडिया सूझते हैं और न ही पार्टी कार्यकर्ताओं में कोई उत्साह पैदा होता है. उन्हें मालूम होता है कि वो पार्टी को जिताने के लिए कितनी भी जान लगा लें मगर गांव का अगला मुखिया भी मुखिया का बेटा या भाई ही बनेगा. इसलिए सबकी सोच रफ़्ता रफ़्ता यही हो जाती है कि मेरी ओर से नए विचार और नई रणनीति की बात करना फ़िज़ूल है, कहीं मुखिया को घेरे हुए ख़ुशामदीद मेरे ही ख़िलाफ़ मुखिया के कान न भरना शुरू कर दें और मुझे मुखिया की कृपा से पार्टी में जो थोड़ी बहुत इज़्ज़त मिली है, वो भी हाथ से जाए. बीजेपी के लिए पहले से भी बड़ा बहुमत लेना भले ही बहुत बड़ी ख़ुशख़बरी सही, मगर इससे बड़ी ख़ुशख़बरी ये है कि राहुल गांधी अपने पद पर बने रहेंगे. इसका मतलब ये हुआ कि 2024 का चुनाव भी पक्का. चीन के वरिष्ठ जंगी दार्शनिक सनझू का कहना है कि जब शत्रु कोई गंभीर ग़लती कर रहा हो तो उसे डिस्टर्ब बिल्कुल नहीं करना चाहिए क्योंकि आधी जंग आप जीतते हैं और आधी शत्रु आपको जिताता है. जहां तक नए भारत में पुरानी कांग्रेस का मामला है तो उसके हालात के बारे में हमारे एक कवि मरहूम जॉन एलिया का ये शेर पूरा पूरा है