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मुंबई, केंद्र सरकार ने ड्रोन की नई पॉलिसी जारी की है। दावे हैं कि इससे विकास की नई बहार आएगी और हिंदुस्थान की दुनिया भर में धमक दिखाई देगी। टैक्सियां हवा में घूमती नजर आएंगी। सपने तो अच्छे हैं और कई मामलों में ड्रोन जैसी तकनीकी मददगार साबित हो रही है। हालांकि, इसका दूसरा पहलू भी है, जो बेहद खतरनाक है। इस पॉलिसी को लेकर सबसे ज्यादा चिंता सुरक्षा एजेंसियों को सता रही है। अभी तक उन्हें यह नहीं पता है कि नई पॉलिसी सुरक्षा के लिहाज से कितनी कारगर सिद्ध होगी। कई विशेषज्ञों का मानना है कि अभी तक हमने नई पॉलिसी की समीक्षा नहीं की है, लेकिन जरा भी चूक हुई तो खामियांभरी यह पॉलिसी सुरक्षा के लिहाज से बहुत बड़ी घातक सिद्ध हो सकती है।
जम्मू-कश्मीर में आतंकवादियों द्वारा ड्रोन से सैन्य ठिकाने पर बम ब्लास्ट की घटना सामने आ चुकी है। अभी हाल ही में अमेरिका ने दावा किया है कि काबुल हवाई अड्डे पर हुए बम धमाके का बदला लेने के लिए ड्रोन से आइसिस के ठिकाने को नष्ट किया है। इस हालात में सवाल उठ रहे हैं कि ड्रोन हमले से निपटने के लिए हिंदुस्थान में क्या तैयारियां की गई हैं? नई पॉलिसी कितनी कारगर होगी, इसे लेकर संदेह निर्माण किए जा रहे हैं। इस संबंध में कई सैन्य अधिकारियों से बातचीत की गई। उनका कहना है कि नई पॉलिसी को लेकर सुरक्षा के लिहाज से अभी तक कोई स्पष्टता नहीं है। सेना के एक्सपर्ट इस पॉलिसी की समीक्षा कर रहे हैं, आनेवाले दिनों में इस पर निर्णय लिया जाएगा। फिलहाल तो सेना के ठिकानों पर बिना अनुमति किसी भी ड्रोन या एमयू को उड़ान भरने की इजाजत नहीं है और आगे भी नहीं रहेगी। सिविल एरिया में उड़ानों पर निर्णय सरकार और स्थानीय प्रशासन पर निर्भर करता है। हालांकि, ड्रोन हमले के मद्देनजर जनमानस में सवाल उठ रहा है कि सुरक्षा का क्या?
नौसेना के प्रवक्ता मेहुल कर्णिक के अनुसार सेना की ओर से सूचनाएं केंद्र सरकार को दी जा चुकी हैं। छोटे ड्रोन को सेना की परिधि में बिना अनुमति उड़ान भरने की स्वीकृति नहीं होगी। उसे मार गिराया जाएगा। अमेरिका की आईएसआई पर की गई कार्रवाई बहुत बड़ी टेक्नोलॉजी है। यह तकनीकी बहुत ही कम देशों के पास है। उन्होंने यह भी कहा कि इस तरह से कोई देश किसी पर हमला नहीं कर सकता। फिलहाल, हिंदुस्थान सहित कई देशों के पास इस टेक्नोलॉजी से निपटने का कारगर उपाय नहीं है। भविष्य में इस पर रणनीतियां तैयार होंगी। इस मुद्दे को लेकर कोस्ट गार्ड के आर.के. सिन्हा से भी बात की गई लेकिन अभी तक विकास के दूसरे पहलू ड्रोन हमले की सुरक्षा को लेकर कोई स्पष्टता नजर नहीं आ रही है।
रक्षा अनुसंधान व विकास संगठन (डीआरडीओ) दावा कर चुका है कि हमारी काउंटर-ड्रोन टेक्नोलॉजी छोटे ड्रोनों के हवाई हमलों के खतरे को बेअसर करने के लिए कई तरह के तरीकों का इस्तेमाल करती है। इस सिस्टम में एक रडार है, जो ४ किमी दूर तक माइक्रो ड्रोन का पता लगाने के साथ ३६०-डिग्री कवरेज देता है। दो किमी तक के माइक्रो ड्रोन का इलेक्ट्रो-ऑप्टिकल / इन्प्रâारेड (ईओ/आईआर) सेंसर पता लगा सकते हैं। रेडियो प्रâीक्वेंसी डिटेक्टर तीन किमी तक इस तरह के किसी भी कम्यूनिकेशन का पता लगा सकते हैं। बहरहाल सवाल उठ रहे हैं कि बादलों में छुपकर वार करनेवाली नई ड्रोन तकनीकी से निपटने की रणनीति क्या है?

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