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ठाणे, अमेरिका, ब्राजील, अर्जेंटीना से सोयाबीन तेल और यूक्रेन और रूस से सूरजमुखी तेल के आयात के बारे में तो सुना होगा पर नेपाल से इसका संबंध नहीं है। सवाल है कि जिस देश में सोयाबीन और सूरजमुखी की पैदावार न के बराबर है, वहां से आयात कैसे हो रहा है? इसका जवाब है शून्य आयात शुल्क। अब व्यापारी केंद्र सरकार को करोड़ों रुपए का चूना लगाकर वाया नेपाल तेल का आयात कर रहे हैं।
इस संबंध में अखिल भारतीय खाद्य तेल व्यापारी महासंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष शंकर ठक्कर का कहना है कि दक्षिण एशियाई मुक्त व्यापार क्षेत्र के तहत नेपाल तथा बांग्लादेश से जीरो ड्यूटी कारोबार संभव है। जिस तरह से देशभर में नेपाल से आयात कर सोयाबीन तथा सूरजमुखी का तेल बेचा जा रहा है, उसकी गुणवत्ता और बिक्री शंका के घेरे में है।
पिछले ६ महीनों में इस तरह के तेल की बिक्री अचानक बढ़ गई है। वर्तमान बाजार में इस तेल की हिस्सेदारी २० प्रतिशत के आस-पास हो गई है। बाजार में नेपाल में पैक तेल के पाउच, टिन और पेट जार या बोतल बिक रही है। इन पर उत्पादक फर्म का नाम और पता होता है पर तेल आयात करनेवाली फर्म की जानकारी स्टिकर पर चिपका दी जाती है। इसे बाजार में अलग-अलग ब्रांड से बेच दिया जाता है। पाउच पर एफएसएसआई मानकों के अनुरूप जानकारी नहीं होती है। ठक्कर ने बताया कि हजारों टन तेल आयात शुल्क के बिना देश में लाया जा रहा है। राजस्व का नुकसान हो रहा है। छोटे उत्पादकों का कारोबार प्रभावित हो रहा है। संगठन के महामंत्री तरुण जैन का कहना है कि आयातीत तेलों के पाउच पर उत्पादक का नाम हो पर आयातक का नाम न होने से गुणवत्ता और वैधानिकता की गांरटी नहीं होती है। शंकर ठक्कर ने बताया कि पिछले महीने इंदौर के पालवा क्षेत्र अंतर्गत स्थित महेंद्र वर्क्स नामक खाद्य तेल कंपनी पर अन्न एवं औषधि प्रशासन द्वारा छापेमारी की गई थी। छापेमारी के दौरान वहां नेपाल के अलग-अलग ब्रांड के सोयाबीन, सूरजमुखी तथा नारियल के तेल के पैकेट मिले। पैकेट पर बिहार के किसी आयातक का नाम लिखा था और एफएसएसएआई द्वारा रजिस्टर्ड नंबर भी दर्ज था, जो १४ डिजिट की जगह १२ डिजिट का था। इस रजिस्टर्ड नंबर के बनावटी होने की संभावना जताई जा रही है। इसकी जांच की जा रही है। इसी तरह का एक दूसरा मामला महाराष्ट्र के वर्धा में आया है। ठक्कर ने बताया कि इस तरह के ५० से ज्यादा मामले अब तक आ चुके हैं। नेपाल से तेलों का आयात किए जाने से सरकार को प्रतिवर्ष १,२०० करोड़ रुपए की चपत लग रही है।


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