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मुंबई : केंद्र सरकार द्वारा बनाए गए कृषि कानूनों के विरोध में समाज सेवी अन्ना हजारे द्वारा अनशन की घोषणा की गई थी। पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस व केंद्रीय कृषि राज्य मंत्री कैलाश चौधरी की शुक्रवार को उनसे हुई मुलाकात के बाद उनका अनशन वापस लेना शिवसेना को रास नहीं आ रहा है। शिवसेना के मुखपत्र सामना में उन पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की गई है। अन्ना हजारे ने भी यह कहकर शिवसेना को जवाब दिया कि मेरे कारण ही तुम्हारे मंत्रियों को घर जाना पड़ा है, ये भूल गए क्या? सामना ने उनके अनशन वापस लेने पर सवाल खड़ा करते हुए लिखा कि अन्ना द्वारा अनशन का अस्त्र बाहर निकालना और बाद में उसे म्यान में डाल देना, ऐसा इससे पहले भी हो चुका है। इसलिए अभी भी हुआ तो इसमें अनपेक्षित जैसा कुछ नहीं था।
भाजपा नेताओं द्वारा दिए गए आश्वासन के कारण अन्ना संतुष्ट हो गए होंगे तो यह उनकी समस्या है। किसानों के मामले में दमन का फिलहाल जो चक्र चल रहा है, कृषि कानूनों के कारण जो दहशत पैदा हुई है बुनियादी सवाल उसे लेकर है। सामाना ने अन्ना से पूछा कि अन्ना हजारे का इस घटनाक्रम पर निश्चित तौर पर क्या मत है? असल में अन्ना हजारे जो अनशन करना चाह रहे थे, उसके पीछे का उनका मुख्य मकसद क्या था? कृषि कानून रद किए जाएं, ऐसा आंदोलनकारी किसानों का कहना है। अन्ना हजारे का अनशन किसानों को समर्थन देने के लिए था क्या? यह स्पष्ट नहीं हुआ। अन्ना का अनशन उसके लिए होता तो अन्ना को मोदी सरकार के विरोध में खुलकर आना चाहिए था।
दिल्ली की विभिन्न सीमाओं पर चल रहे किसान आंदोलनों में अन्ना को निर्णायक भूमिका अख्तियार करने की सलाह देते हुए सामना लिखता कि इस निर्णायक मौके पर अन्ना की आवश्यकता है। अन्ना द्वारा खुलकर भूमिका अपनाने की जरूरत है। 90-95 वर्ष के किसान गाजियाबाद की सीमा पर ताल ठोंककर बैठे हैं, ऐसे बुजुर्ग किसानों को नैतिक बल देने के लिए अब अन्ना को खड़ा रहना चाहिए। रालेगण में बैठकर भाजपाई नेताओं के साथ खेल-खेलना अब व्यर्थ है। मौका जंग का ही है व ऐसे युद्ध का तजुर्बा अन्ना इससे पहले ले चुके हैं। युद्ध अब गांव से व मंदिर से नहीं होगा। मैदान में उतरना पड़ेगा। लोकतंत्र, किसानों का आंदोलन, किसानों के स्वाभिमान आदि के संदर्भ में अन्ना को भूमिका अख्तियार करनी ही पड़ेगी। रालेगण में बैठकर भाजपाई नेताओं के साथ प्रस्ताव और चर्चा के दौर का क्या लाभ? अन्ना ने पहले अनशन का एलान किया और अब केंद्र सरकार के आश्वासन पर विश्वास रखकर उसे स्थगित कर दिया। यह सब ठीक है, परंतु कृषि व किसानी को बर्बाद करने वाले कृषि कानूनों को लेकर उनकी भूमिका क्या है?

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